Sunday, 8 December 2013

लोकतंत्र की हार ।

एक बार फिर लोकतंत्र हार की कगार पर है । हमारा देश जिसे धर्मनिरेपक्ष कहा जाता है , आज के चुनावी रुझानो को देखकर लगता है कि ये नाम सिर्फ नाम रह गया है , आज बहुसंख्यको ने बता दिया है कि इस देश मै अल्पसंख्यको के लिए कोई जगह नही हैँ । खुले आम अल्पसंख्यको को देश से भगाने की बात करने वाले दलो को आज चुनावो मै बहुमत मिल रही है । अब किस का लोकतंत्र पर भरोसा रहेगा , जहाँ बहुसंख्यक ही उन्है खत्म करने के सपने देखने वालो का साथ दे रहै हैँ ।

मुल्क !

मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है ,चोरों के संग पहरेदार नज़र आते हैये अंधेरा कैसे मिटे , तू ही बता ऐ आसमाँ ,रोशनी के दुश्मन चौकीदार नज़र आते हैहर गली में, हर सड़क पे ,मौन पड़ी है ज़िंदगी ,हर जगह मरघट से हालात नज़र आते हैसुनता है आज कौन द्र्पदी की चीख़ को ,हर जगह दुस्साशन सिपहसालार नज़र आते हैसत्ता से समझौता करके बिक गयी है लेखनी ,ख़बरों को सिर्फ अब बाज़ार नज़र आते हैसच का साथ देना भी बन गया है जुर्म अब ,सच्चे ही आज गुनाहगार नज़र आते हैमुल्क की हिफाज़त सौंपी है जिनके हाथों मे ,वे ही हुकुमशाह आज गद्दार नज़र आते हैखंड खंड मे खंडित भारत रो रहा है ज़ोरों से ,हर जाति , हर धर्म के, ठेकेदार नज़र आते है __