Wednesday, 9 October 2013

हर सिमट मचलती किरणो ने अब खून ए शब अ गम तोड दिया । अब जाग उठे है दीवाने , दुनिया को जगाकर दम लैँगैँ । ये बात अया है दुनिया पर हम फूल भी है तलवार भी है । या बज्म ए जहाँ महकाएंगेँ, या खून मै नहाकर दम लैगेँ । सोचा है "उमर" अब कुछ भी हो हर हाल मै अपना हक लैगेँ । इज्जत से जिए तो जी लैँगे , या जाम ए शहादत पी लैँगै । नारै ए तकबीर । अल्लाहु अकबर ।

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