Thursday, 28 November 2013

मुसलमान ?

गूंगी हो गयी आज कुछ ज़बान कहते-कहते, हिचकिचा गया मैं खुद को मुसलमान कहते कहते. ये बात नहीं की मुझे रब पर यक़ी नहीं, बस डर गया खुद को साहिबे ईमान कहते कहते.. तौफीक न होई मुझे एक वक़्त की नमाज़ की, और चुप हुआ मुअज्ज़न अज़ान कहते कहते.. किसी काफ़िर ने जो पुछा के क्या है महीना, शर्म से पानी पानी हुआ रमजान कहते कहते.. मेरी अलमारी में गर्द से ढंकी किताब का जो पुछा, मैं गड गया ज़मीन में कुरान कहते कहते.. ये सुन के चुप्पी साध ली 'इकबाल' उस ने.. यूँ लगा जैसे रुक गया हो हैवान कहते कहते.. ।

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