चलिए सभी मुसलमान भाई को मुबारक हो कि आइंस्टाइन शिया मुसलमान हो गए। जल्द ही न्यूटन और गैलिलीयो के भी सुन्नी मुसलमान होने की घोषणा हो सकती है। ये अलग बात है कि फिर दोनों एक-दूसरे को काफ़िर क़रार दे दें। असल में ये सभी बाते हमारे inferiority complex को दर्शाता है। बचपन से हम सुनते आ रहे है कि जब चांद पर नील आर्मस्ट्रांग पहुंचा तो उसने वहां आजान की आवाज सुनी, वापस आ कर वह मुसलमान हो गया। इसी तरह यूरी गागरिन, सुनीता विलियम्स, माइक टिसन, माइकल जैक्सन और बहुत बड़े हस्तियो के बारे मे हम ने मुसलमान होने की खबर सुनी। ये सारी बातें आगे जा कर झूठी साबित हुई।
हम आइंस्टाइन को मुसलमान बनाने पर तुले हुए हैं और उसकी उपलब्धियां अपने खाते में डालना चाहते हैं। एक मुस्लिम वैज्ञानिक अब्दुस्सलाम जो भारत मे पैदा हुए और आजादी के बाद पाकिस्तान चले गए और जो भौतिक विज्ञान के वैज्ञानिक थे, उस को उसके काम के लिये नोबेल प्राइज़ दिया गया और ये विश्व का पहला मुस्लिम वैज्ञानिक था। बस उसकी गलती थी कि वह अहमदिया फिरका को मानता था, उसके खिलाफ मुल्लाओ ने पाकिस्तान मे मोर्चा खोल दिया और उसके क़ाफ़िर होने का फ़तवा दे दिया गया और इन मुल्लाओ ने हुकूमत पर इतना दबाव डाला कि आखिरकार 1976 में जब पाकिस्तान संसद ने अहमदी को गैर-मुस्लिम करार दिया तो डॉक्टर अब्दुस्सलाम विरोध में पाकिस्तान छोड़कर लंदन चले गए। 21 नवम्बर 1996 में 70 साल की उम्र में अब्दुस्सलाम की मृत्यु गंभीर बीमारी के कारण लंदन में हुई, उन्हें पाकिस्तान में ही दफनाया गया। इस तरह हम ने एक मुसलमान को काफ़िर बना दिया और आइंस्टाइन को मुसलमान बना रहे है।
असल मे इस्लाम को मुल्लाओ ने जितना नुक़सान पहुचाया है और किसी ने नहीं। शिक्षा को इस्लाम में अहम बताया गया है लेकिन उससे ही मुल्लाओं ने दूर कर दिया। शिक्षा में मुसलमान कितने पीछे है, आप खुद इस से अंदाजा लगाये के Higher Education तक 98% यहूदी पहुंचते है, ईसाई 42% , हिन्दू 11% और मुसलमान 2 % तक ही पहुंचते है। जबकि आबादी के अनुसार हम विश्व मे दूसरे नम्बर पर हैं।
असल मे इस्लाम को मुल्लाओ ने जितना नुक़सान पहुचाया है और किसी ने नहीं। शिक्षा को इस्लाम में अहम बताया गया है लेकिन उससे ही मुल्लाओं ने दूर कर दिया। शिक्षा में मुसलमान कितने पीछे है, आप खुद इस से अंदाजा लगाये के Higher Education तक 98% यहूदी पहुंचते है, ईसाई 42% , हिन्दू 11% और मुसलमान 2 % तक ही पहुंचते है। जबकि आबादी के अनुसार हम विश्व मे दूसरे नम्बर पर हैं।
1800-1920 के बीच हुए बड़े वैज्ञानिक जिनके आविष्कार दुनिया को आधुनिक दौर मे ले गए, इन वैज्ञानिकों में सभी या तो यहूदी या ईसाई है, एक भी मुस्लिम वैज्ञानिक नही हैं। अब एक नज़र इस पर भी डालिए कि दुनिया के सबसे बड़े इनाम नोबेल प्राइज़ भिन्न-भिन्न क्षेत्रों मे वैज्ञानिकों को दिया जाता है उसमे हमारी क्या स्थिति है। 1901-2011 तक नोबल प्राइज़ भौतिकी, रसायन, मेडिकल क्षेत्र 375 वेज्ञानिकों को दिया गया है जिस मे सिर्फ 4 हिन्दू और 1 मुस्लिम विज्ञानिक को मिला है बाकी वैज्ञानिक या तो यहूदी या ईसाई है। इससे पता चलता है के शिक्षा के क्षेत्र मे हम बहुत पीछे है।
सच बात यह है कि हम मुसलमान इस समय 'खिसयानी बिल्ली खंभा नोचने' के जैसे हैं, क्योंकि इस आधुनिक विश्व और मानवता मे हमारा कोई सहयोग नही है , क्योंकि हम शिक्षा मे आगे नहीं है इसलिए दूसरे की उपयोगिता हम अपने खाते मे डालना चाहते हैं। इसलिए जब भी होता है हम किसी को भी मुसलमान या क़ाफ़िर बना देते है। इस तरह के बेवक़ूफी वाले काम खत्म होने चाहिए। अपनी गलती और अपनी कमी को मान कर सुधार करने चाहिए और शिक्षा मे आगे आना चाहिए ताकि हम भी और क़ौमों के बराबर खड़े हो सकें
सच बात यह है कि हम मुसलमान इस समय 'खिसयानी बिल्ली खंभा नोचने' के जैसे हैं, क्योंकि इस आधुनिक विश्व और मानवता मे हमारा कोई सहयोग नही है , क्योंकि हम शिक्षा मे आगे नहीं है इसलिए दूसरे की उपयोगिता हम अपने खाते मे डालना चाहते हैं। इसलिए जब भी होता है हम किसी को भी मुसलमान या क़ाफ़िर बना देते है। इस तरह के बेवक़ूफी वाले काम खत्म होने चाहिए। अपनी गलती और अपनी कमी को मान कर सुधार करने चाहिए और शिक्षा मे आगे आना चाहिए ताकि हम भी और क़ौमों के बराबर खड़े हो सकें
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