Sunday, 8 December 2013

लोकतंत्र की हार ।

एक बार फिर लोकतंत्र हार की कगार पर है । हमारा देश जिसे धर्मनिरेपक्ष कहा जाता है , आज के चुनावी रुझानो को देखकर लगता है कि ये नाम सिर्फ नाम रह गया है , आज बहुसंख्यको ने बता दिया है कि इस देश मै अल्पसंख्यको के लिए कोई जगह नही हैँ । खुले आम अल्पसंख्यको को देश से भगाने की बात करने वाले दलो को आज चुनावो मै बहुमत मिल रही है । अब किस का लोकतंत्र पर भरोसा रहेगा , जहाँ बहुसंख्यक ही उन्है खत्म करने के सपने देखने वालो का साथ दे रहै हैँ ।

मुल्क !

मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है ,चोरों के संग पहरेदार नज़र आते हैये अंधेरा कैसे मिटे , तू ही बता ऐ आसमाँ ,रोशनी के दुश्मन चौकीदार नज़र आते हैहर गली में, हर सड़क पे ,मौन पड़ी है ज़िंदगी ,हर जगह मरघट से हालात नज़र आते हैसुनता है आज कौन द्र्पदी की चीख़ को ,हर जगह दुस्साशन सिपहसालार नज़र आते हैसत्ता से समझौता करके बिक गयी है लेखनी ,ख़बरों को सिर्फ अब बाज़ार नज़र आते हैसच का साथ देना भी बन गया है जुर्म अब ,सच्चे ही आज गुनाहगार नज़र आते हैमुल्क की हिफाज़त सौंपी है जिनके हाथों मे ,वे ही हुकुमशाह आज गद्दार नज़र आते हैखंड खंड मे खंडित भारत रो रहा है ज़ोरों से ,हर जाति , हर धर्म के, ठेकेदार नज़र आते है __

Thursday, 28 November 2013

आखिर एक मशहूर वैज्ञानिक मुसलमान कैसे हो गया ?

(अंतरिक्ष वैज्ञानिक( मिस्टर नील आम्र स्ट्रांग) और दाऊद मूसा बिदकोक, मुसलमान क्यों बन गए थे ?) किया आप जानते हें,/ क़ुरआन की सत्यता को सिद्ध करने के लिए क़ुरआन का यह प्रमाण भी काफी है कि मुहम्मद सल्ल0 के एक संकेत पर चाँद दो टूकड़े हो गए। हुआ यूं कि एक बार मक्का के सरदारों ने मुहम्मद सल्ल0 के पैगम्बर होने का प्रमाण माँगा औऱ कहा कि यदि तूने चाँद को दो टूकड़े कर दिया तो हम तुझे दूत मान लेंगे। जब आपने चाँद की ओर ऊंगली उठाई तो आपके संकेत से चाँद दो टुकड़े हो गए। इस घटना को क़ुरआन ने यूं बयान किया हैः “वह घड़ी निकट आ गई और चाँद फट गया”।(सूरः अल क़मर54-1) सम्भव है कि आज के इस आधुनिक युग में इस तथ्य पर विश्वास करने में किसी को संकोच हो लेकिन इसका क्या करेंगे जबकि विज्ञान ने इसे प्रमाणित कर दिया हो। आप यह अवश्य जानते होंगे कि 20 जनवरी 1969 ईसवी में मिस्टर नील आम्र-स्ट्रांग और उनके सहयोगी चाँद पर चढ़े थे परन्तु यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि इन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने चौदह सौ वर्ष पूर्व चर्चित तथ्य को सिद्ध कर के संसार को आश्चर्यचकित कर दिया। आइए हम आपको वैज्ञानिकों की गवाही सुनाते हैं। पश्चिमी लन्दन के एक मेडिकल कालेज में एक मुसलमान विद्वान चाँद फटने के विषय पर भाषण दे रहे थे, उसी बीच एक अंग्रेज़ स्टेज पर उपस्थित हुआ और मान्य विद्वान से इस विषय पर कुछ कहने की अनुमति चाही। अनुमति मिलने पर उसने कहना शुरू किया कि मेरा नाम दाऊद मूसा बिदकोक है, मैं मुसलमान हूं तथा अमेरीकी इस्लामी संघ का अध्यक्ष भी हूं। सूरः क़मर की प्राथमिक आयतें मेरे इस्लाम लाने का कारण बनी हैं। एक बार मुझे मेरे एक मुसलमान मित्र ने क़ुरआन करीम की एक प्रति दी। मैंने उसे घर ले जा कर पढ़ना शुरू किया तो सब से पहले मेरी नज़र इसी आयत पर पड़ी, अनुवाद पढ़ते ही मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, मैंने सोचा कि यह कैसे सम्भव होगा कि चाँद दो टूकड़े हो कर फिर परस्पर मिल जाए। उसी समय मैंने अनुदित क़ुरआन को बन्द कर के रख दिया और दोबारा खोल कर देखा तक नहीं। 1978 ईसवी की बात है, मैं एक दिन टेलिविज़न पर बी बी सी की एक वार्ता सुन रहा था, यह वार्ता प्रोग्रामर और तीन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के बीच हो रही थी। वैज्ञानिकों ने जब प्रोग्रामर जेम्स बीरक को बताया कि पहली बार चाँद पर चढ़ने में एक लाख मिलियन डालर का खर्च आया था तो प्रोग्रामर इसे सुनकर आश्चर्यचकित हो गया और कहने लगा कि यह क्या मूर्खता है कि एक लाख मिलियन डालर मात्र इस लिए खर्च किया जाए कि अमेरिकी विज्ञान को चाँद के स्तर तक पहुंचाया जा सके, जबकि आज पृथ्वी पर लाखों लोग खूके मर रहे हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि हम अमेरीकी विज्ञान को चाँद के स्तर तक पहुंचाने नहीं गए थे बल्कि हम चाँद की आंतरिक बनावट का परिक्षण कर रहे थे उसी बीच ऐसे तथ्य का पता चला जिसके सम्बन्ध में संतुष्ट करने के लिए चाँद की लागत से दोबारा माल भी खर्च करते तो हमारा कोई समर्थन न करता। प्रोग्रामर ने पूछाः यह तथ्य क्या है ? उन्होंने उत्तर दियाः हमने पाया कि किसी दिन यह चाँद टूट गया था फिर परस्पर मिल गया। दाऊद मूसा बिदकूक कहते हैं कि इस खोज को सुन कर मैं जिस कुर्सी पर बैठा था उस से तुरंत कूद पड़ा और मेरे मुंह से यह बात निकल पड़ी कि यह चमत्कार तो वही है जो चौदह सौ वर्ष पूर्व मुहम्मद सल्ल0 के हाथ पर प्रकट हुआ था, आज अमेरीकी वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को सिद्ध कर दिया…. मैं एक बार फिर अनुदित क़ुरआन को ध्यानपूर्वक पढ़ना आरम्भ किया। अन्ततः मुझ पर मूक्ति मार्ग स्पष्ट हो गया और मैंने तुरन्त इस्लाम स्वीकार कर लिया। दाऊद मूसा बिदकोक के इस्लाम स्वीकार करने की कहानी निःसंदेह आश्चर्यचकित है परन्तु चाँद की धरती को अपने पैरों से रोंदने वाले मिस्टर नील आम्र- स्ट्राँग के मुसलमान होने की कहानी उस से अधिक आश्चर्यचकित है। जब वह चाँद के स्तर पर पहुंचे तो एक मधूर आवाज़ उनके कान से टकड़ाई। उनके दिल में यह आवाज़ सुनने की तड़प मचलती रही। पूरे तीस वर्षों के पश्चात वह समय आया जिसकी प्रतीक्षा उनको एक ज़माने से थी। एक दिन दोपहर के समय मनोरंजन हेतु अपने साथियों के साथ एक विचित्रालय में पहुंचे। निकट की मस्जिद से अज़ान की आवाज़ सुनाई दी। तीस वर्ष पूर्व का यह क्षण याद आ जाता है जब वह चाँद की सतह पर उतरे थे और वहाँ पर यही आवाज़ सुनी थी तब उन्हें पता चला कि यह अज़ान की आवाज़ है जो पाँच समय की नमाज़ों के लिए दी जाती है तो उनका हृदय आश्चर्यचकित रह गया और उन्होंने इस्लाम के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की यहाँ तक कि इस्लाम को गले से लगा लिया। मिस्टर नील आम्र स्ट्रांग ने इस्लाम तो स्वीकार कर लिया लेकिन उनको इसकी बड़ी भारी क़ीमत चुकानी पड़ी। कुछ ही समय बीते थे कि अमेरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की ओर से उनको एक पत्र मिला जो उनके सर्विस त्याग का आदेशपत्र था। उनकी सर्विस तो समाप्त हो गई परन्तु उन्होंने इसकी कोई परवाह न की बल्कि इन शब्दों में इसका उत्तर दिया “मेरी सर्विस तो समाप्त हो गई परन्तु मैंने अपने अल्लाह को पा लिया । मेवाती ।

मुसलमान ?

गूंगी हो गयी आज कुछ ज़बान कहते-कहते, हिचकिचा गया मैं खुद को मुसलमान कहते कहते. ये बात नहीं की मुझे रब पर यक़ी नहीं, बस डर गया खुद को साहिबे ईमान कहते कहते.. तौफीक न होई मुझे एक वक़्त की नमाज़ की, और चुप हुआ मुअज्ज़न अज़ान कहते कहते.. किसी काफ़िर ने जो पुछा के क्या है महीना, शर्म से पानी पानी हुआ रमजान कहते कहते.. मेरी अलमारी में गर्द से ढंकी किताब का जो पुछा, मैं गड गया ज़मीन में कुरान कहते कहते.. ये सुन के चुप्पी साध ली 'इकबाल' उस ने.. यूँ लगा जैसे रुक गया हो हैवान कहते कहते.. ।

इन से बडा देश द्रोही कौन ?

मुसलमानो को देशद्रोही कहने वालो , इनसे बडा देशद्रोही कौन हो सकता है , जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के खिलाफ विरुद्ध गवाही देने वाले दो व्यक्ति कौन थे । जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल ! दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है। सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे घृणा के पात्र थे अब तक है लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था। शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी। उसके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी- बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था। खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की। खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी, शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं। — । मेवाती (01) ।

अजान ।

FAJR ki AZAAN sab se pehle Indonesia se shuru hoti hai aur phir Sumatra Malaysia Dhaka Sri Lanka India Pakistan Afghanistan Musqat Saudia Kuwait Dubai Yaman Iraq Iran Istanbul Tarabils Libya America tak Continue 9 hrs Fajr ki AZAAN hoti hui waapas Indonesia pahunchti hai, jahan Zohar ki AZAAN ka waqt ho jata hai Isi tarah 5 waqt ki AZAAN se poori Zameen pr 1 bhi second aisa nahi hota jab AZAAN ki Awaaz na aati ho ! _Plz Share this Beautiful Knowledge. ●●═●DONT FORGET TO SHARE●═●

मुसलमानो अपनी ताकत पहचानो !

मुसलमानो पढो समझो ओर अपनी ताकत पहचानो । एक चरवाहे के पास कई जानवर थे जिनको लेके वोह रोजाना जंगल जाता था चराने के लिए. एक दिन जब वह जंगल गया तो उसे एक शेर का बच्चा मिला पहले तो इसने सोचा की इसको छोड़ के चला जाये क्यूंकि यह इसके काम का नहीं है बल्कि इससे इसे खतरा ही है लेकिन फिर उसको उसपे रहम आ गया और लेकर अपने गया धीरे धीरे वोह बच्चा जवान शेर बन गया लेकिन उसकी आदत बिलकुल बकरियों और भेड़ो की तरह ही थी बल्कि वह उनसे डरता भी था चूंकि वह उनके साथ पलकर उन्ही कइ तरह हो गया था अक्सर बकरिय उसको मारती भी थी वोह चुपचाप बर्दाश्त कर लेता था जंगल में एक भेड़िया रहता था जो की बकरियों को खाना चाहता था लेकिन शेर की डर से नहीं खा पाता था जब भेडिये ने शेर को बकरियों से मार खाते देखा तो उसने बकरियो को खाने का प्लान बनाया और एक दिन बकरियों के झुण्ड पर हमला कर दिया शेर ने जब अपने आँखों से अपने साथियो को बेबस देखा तो इसके अन्दर का सोया हुआ शेर जाग गया और एक बार में ही झपट कर भेडिये का काम खतम कर दिया। इसी तरह आज का मुसलमान है हमारे ऊपर गैर मुस्लिम ताकते हावी होना चाहती हैं हमें अलग करके ख़तम करन चाहते हैं और हमको अपनी असलियत का अंदाज़ा ही नहीं है याद करो हम मुहम्मद बिन कासिम की औलाद हैं हम सुलतान सलाहुद्दीन अय्युबी के बेटे हैं हम महमूद गजनवी के खून है आखिर हम कब तक इसी तरह बेबस रहेंगे हम कब अपनी असलियत पहचानेंगे कब तक ये गैर मुस्लिम तकते हमारे ऊपर जुल्म करेंगे कब तक ये हम से फायदा उठाएंगे और हमें कठपुतली की तरह इस्तेमाल करेंगे कब तक ये हमारे जज्बात और धर्म से खिलवाड़ करते रहेंगे अब और बर्दाश्त नहीं होता दोस्तों। हम जगे या न जगे लेकिन अपने अन्दर जगे हुए इस्लामी खून को जगाना होगा अपने अन्दर सोये हुए शेर को जगाना होगा....!!! मेवाती

आज कै दौर का शेर ए इस्लाम !

जगा दिया मुसलमानों को जिसने, देश जगाने वाला है। विजय पताका फहराकर वो जो दिल्ली आने वाला है।। शंखनाद हो गया शुरू, अब तो रण होने वाला है। आजसुना है अपने कानो से की ओवेसी आने वाला है।। मत डरो अंधियारो से अब भोर होने वाला है। गर्जना सुन पा रहा हु कोई शेर आने वाला है।। जल रहा है पुरा भारत अब शासन हिलने वाला है। सुन लो सब कान खोल के, अब ओवेसी आने वाला है । मेवाती ।

ऐसे थे खलीफा ए इस्लाम ।

ऐसे थे हमारे लीडर । हिन्दुस्तानियो तुम इस्लाम पर तोहमत लगाते हो , अगर आज हिन्दुस्तान मै इस्लाम की हुकूमत होती तो देश की तकदीर कुछ ओर होती । अफसोस मगर हमारा देश धोती वालो के हाथ मै है जो इसे गर्त मै ले जा रहै है , वाक्या एक खलीफा का , एक बार मस्जिद-ए- नबवी (सऊदी अरब ) में खाना बांटा जा रहा था .एक शख्स ने दो आदमियों का खाना माँगा ,जब उससे सवाल किया गया की दो लोगों का खाना क्यों ? उस आदमी ने कहा की एक मेरा और एक उस आदमी के लिए जो कोने में बैठ कर सूखी रोटी को पानी में डुबो कर खा रहा है . इतने सुनते ही वहां खाना बाँट रहे लोगों ने कहा की 'हम उसी आदमी का दिया हुआ खाना बांट रहे हैं ' यह सुन कर खाना मांगने वाले ने पूछा की वह आदमी कौन है ? उसको जवाब दिया जाता है - वह हमारे खलीफा ( Leader ) हजरत अबुबक्र सिद्दीक हैं . अल्लाह ताअला हमारे देश की हिफाजत फरमा - आमीन , सुम्मा आमीन ।

Wednesday, 27 November 2013

बहुत कुछ दिया मेवात ने फिर भी इतना पिछडा क्योँ ?

बात सन् 1857 की है. आज़ादी की लड़ाई में मेवात के बहादुरों ने मुल्क को फिरंगियों से आजाद कराने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिरंगियों ने मेवात के तकरीबन सौ गांवों को जला कर राख कर दिया और 1085 लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया. उस समय मेवात गुड़गांव जिले का हिस्सा था. 1939 मील दूरी में बसे इस गुड़गांव की जनसंख्या 6 लाख 62 हजार 500 थी, जिसमें मेवात के मेव समाज के लोगों की संख्या एक लाख दस हजार चार सौ से अधिक थी. जिले में दक्षिण का बड़ा हिस्सा मेवात कहलाता था. दरअसल, हमारा मेवात चारों तरफ से अंग्रेजी रिसायतों से घिरा हुआ था. फिर भी मेवों ने कभी हिम्मत नहीं हारी. हर एक जंग में बहादुरी की छाप छोड़ी. इतना ही नहीं. रायसीना गांव में मेवों ने अंग्रेजों से न सिर्फ कांटों की बाड़ खुदवाई, बल्कि अंग्रेज अफसरों व सिपाहियों के सर क़लम कर चौपाल की सीढ़ियों में दफनाएं. क्रांति की नाकामी के बाद अंग्रेजों ने ऐसे गांवों को भयानक सजाएं दी. अंग्रेजों ने रायसीना व आस-पास के गांव नूनेहरा, मुहम्मदपुर, सांपकी नंगली, हरियाहेडा, बाईकी और हिरमथला की ज़मीन को अपने भक्तों को इनाम के तौर पर दे दिए, जिसकी तारीफ़ अंग्रेज सेना के अफसरों ने भी की है. अधिकारी लार्ड केनिंग एक जगह लिखते हैं कि “मेव समाज ने मुस्लिम बादशाहों को भी तंग किया था और हमें तो बहुत अधिक परेशान किया है. मेवाती किसानों की धाड़ ने तलवार, बल्लम, बंदूकों और लाठियों से जिस जंग की कामयाबी की पहचान दी. उससे अंग्रेज भी हैरान थे. इस गदर में मेवाती क्रांतिकारियों ने सोहना, घासेडा नूंह, फिरोजपुर झिरका, रुपडाका, पिनगंवा तथा तावडू को अपनी कामयाबियों के बारे में मशवरों का अड्डा बनाया. जहां से वो न सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ते थे, बल्कि दिल्ली के क्रांतिकारियों के लिए भी सैनिक और माली मदद भेजते थे. अल्प खां रायसीना व सदरुद्दीन पिनगंवा ने इस संग्राम में मेवों की हौसला-अफ़जाई की. रायसीना गांव में लोगों ने अंग्रेजों को बैल की जगह गहाटे में जोड़कर उनसे कांटेदार बाड़ खुदवाई. शायद यही कारण था कि दिल्ली पतन के बाद सुकून क़ायम करने के बहाने अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए भारी जुल्म ढाये. नूंह में खैरूगाह नाम खानजादे की शिकायत पर अंग्रेजों के ज़रिये नूंह, अडबर व शाहपुर नंगली के 52 लोगों को फांसी दी गई. इन शहीदों में चार अडबर के, बारह शाहपुर नंगली व बाकी नूंह के रहने वाले मेव शामिल थे. ये फांसी आज के पुराने बस स्टैंड के पास एक बरगद के पेड के नीचे दी गई. इस समय मेवली गांव के चौधरी मेदा ने बीच में आकर लोगों को अंग्रेजों के जुल्म से छुडाया था. इसी तरह तावडू में भी तीस लोग शहीद हुए. इसके अलावा फिरोजपुर झिरका में 11, नुहू में 42 लोगों को फांसी दी गई. गांव दोहा, रुपडाका सहित कई जगहों पर सैकड़ों लोगों को फांसी पर चढ़ा कर मौत के मुंह में डाल दिया गया. इस ग़दर के दौरान पचानका, गोहपुर, मालपुरी, चिगी, उटावड़, कोट, मूगला, मीठाका, खिगूका, गुराकसर, मालूका और झांडा के चार सौ लोग फिरंगी सेना से जंग करते हुए देश के खातिर शहादत हासिल कर गए. इन शहीदों की याद में नूंह में शहीदी पार्क, फिरोजपुर डिारका, दोहा व रूपडाका में शहीद मीनार सहित 11 मीनारें बनाई गई है, ताकि आने वाली पीढ़ी देश पर मर मिटने वाले शहीदों को याद रख सके. इतना ही नहीं इतिहासकार सद्दीक अहमद मेव ने जंग -ए -आजादी 1857 में मेवातियों की मदद की. मेवात की खोज व तहजीब सहित कई किताबें लिखी हैं. जिनमें मेवात के शहीदों की खूबियों को बहुत ही खूबसूरती से बयान किया गया है. ज़रा सोचिए! जिस मेव समाज का इतना ज़बरदस्त इतिहास है. आज हमारा वही मेव समाज कहां पहुंच गया है. आजादी के 65 सालों बाद भी हमारा समाज उसी अशिक्षिता, बेरोज़गारी, पिछडापन, गरीबी और अंधविश्वासों के हालात में अपनी जिंदगी बसर कर रहा है, जो हालात आज़ादी के पहले थे. बल्कि सच्चाई तो यह है कि आज के हालात उस समय से भी बदतर हैं. और शायद इन सबके लिए ज़िम्मेदार हम ही हैं. हमारे समाज का विकास तब ही संभव हैं, जब हमारे मेव समाज के लोग पुराने विचारों को छोड़कर नए सिरे से जिंदगी जीना शुरू करेंगें. विकास तब ही मुमकिन होगा जब हम अपने समाज के बच्चों को दर-दर भटकने देने के बजाये उन्हें तालीम हासिल करने के मक़सद से स्कूलों में भेजेंगे. और हाँ! विकास सरकार के ज़रिये भी तब ही माना जायेगा जब हमारे इलाके के हर गांव में स्कूल खोले जायेंगे और हर बच्चा सुबह-सुबह मजदूरी पर जाने के बजाये स्कूल जाता हुआ नज़र आएगा. और ये सब तब ही मुमकिन होगा, जब हमारे समाज को चलाने वाले नेता हमारे समाज के भोले व अशिक्षित लोगों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना छोड़कर उनकी तरफ इंसानियत की निगाहों से देखना शुरू करेंगे. और उनके हक़ उन तक सही मायनों में पहुचाना शुरू करेंगे, या फिर हमारे समाज को ही अपने अंदर अपने लिए कोई काबिल रहनुमा तलाशना होगा. हमारे समाज के लोगों के भोलेपन और मासूमियत का आलम तो ये है कि अगर आज हमारे समाज के लोगों को कोई मामूली सा काम भी सरकार करते हुए नज़र आती है तो वो उसको अपना हक़ समझने के बजाये उनका एहसान समझते हैं. और बिना सोचे-समझे उनका एहसानमंद होने के नाते अपना अगला कौमी रहनुमा फिर से उसे ही चुन बैठते हैं. और भोलेपन का तो आलम यह है कि पूरे साल किसान बनकर खेत खलयान में काम करते हैं. और अपने घर का खर्च आस-पास के कस्बों में रहने वाले बनियों से क़र्ज़ लेकर चलाते हैं और साल के आखिर में जो पैसा खेतों से मिलता है वो बनिया का क़र्ज़ अदा में ही निकल जाता है. (लेखिकाटाटाइंस्टिट्यूटऑफ़सोशलसाइन्सेज़,मुंबई में अध्यनरत हैं.) Share this:

Monday, 25 November 2013

नमाज में हैं तन्दुरुस्ती के राज !

नमाज में हैं तन्दुरुस्ती के राज ! पॉँच वक्त की नमाज और तरावीह अदा करने से मानसिक सुकून हासिल होता है। तनाव दूर होता है और व्यक्ति ऊर्जस्वित महसूस करता है। आत्मविश्वास और याददाश्त में बढ़ोतरी होती है। नमाज में कुरआन पाक के दोहराने से याददाश्त मजबूत होती है। मोमिन अल्लाह के हर फरमान को अपनी ड्यूटी समझ उसकी पालना करता है। उसका तो यही भरोसा होता है कि अल्लाह के हर फरमान में ही उसके लिए दुनिया और आखिरत की भलाई छिपी है,चाहे यह भलाई उसके समझ में आए या नहीं। यही सोच एक मोमिन लगा रहता है अल्लाह की हिदायत के मुताबिक जिंदगी गुजारने में। समय-समय पर हुए विभिन्न शोधों और अध्ययनों ने इस्लामिक जिंदगी में छिपे फायदों को उजागर किया है। नमाज को ही लीजिए। साइंसदानों ने साबित कर दिया है कि नमाज में सेहत संबंधी कई फायदे छिपे हुए हैं। नमाज अदा करने से सेहत से जुड़े अनेक लाभ हासिल होते हैं। रमजान के दौरान पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज तरावीह भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। नमाज से हमारे शरीर की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है। कुछ मांसपेशियां लंबाई में खिंचती है जिससे दूसरी मांसपेशियों पर दबाव बनता है। इस प्रकार मांसपेशियों को ऊर्जा हासिल होती है। इस प्रक्रिया को ग्लाइकोजेनोलिससके नाम से जानते हैं। मांसपेशियों में होने वाली गति नमाज के दौरान बढ़ जाती है। इस वजह से मांसपेशियों में ऑक्सीजन और खुराक में कमी आ जाती है जिससे रक्त वाहिकाओं में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे रक्त आसानी से वापस हृदय में पहुंच जाता है और रक्त हृदय पर कुछ दबाव बनाता है जिससे हदय की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है। इससे हृदय में रक्त प्रवाह में भी अधिकता आ जाती है। रमजान के दौरान पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज तरावीह से तो सेहत संबंधी कई फायदे होते हैं। रोजा खोलने यानी इफतार से कुछ समय पहले खून में ग्लूकोज और इन्सूलिन की मात्रा बहुत कम होती है। लेकिन इफतार के दौरान खाने-पीने के एक घंटे बाद शरीर में ग्लूकोज और इन्सूलिन का स्तर बढऩे लगता है। लीवर और मांसपेशियां खून में ग्लूकोज को फैलाते हैं। इस प्रकार इफतार के एक और दो घंटे के बाद खून में ग्लूकोज की मात्रा उच्च स्तर पर होती है। ठीक इस बीच शुरूआत होती है तरावीह की नमाज की। तरावीह की नमाज अदा करने से ग्लूकोज की अधिक मात्रा यानी एक्सट्रा कैलोरी कम हो जाती है। शारीरिक और मानसिक मजबूती तरावीह की नमाज अदा करने से शरीर फिट बना रहता है और फिटनेस में बढ़ोतरी होती है। दिल और दिमाग को सुकून हासिल होता है। तरावीह की नमाज के दौरान की गई एक्सट्रा कसरत से नमाजी की सहन शक्ति में बढ़ोतरी होती है और उनमें लचीलापन आता है। पांच बार नमाज अदा करना तीन मील प्रति घण्टे जॉगिंग करने के समान है। पांच बार नमाज अदा करने से शरीर पर बिना किसी दुष्प्रभाव के वे ही अच्छे नतीजे सामने आते हैं जो तीन मील प्रति घण्टे के हिसाब से जॉगिंग करने पर आते हैं। हाल ही में अमरीका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में १९१६ से १९५० के दौरान अध्ययन करने वाले १७००० स्टूडेंट्स का अध्ययन किया गया तो यह बात सामने आई कि तीन मील प्रतिदिन जॉगिंग या इसके बराबर एरोबिक कसरत करने वाले स्टूडेंट्स की मौत की दर कसरत नहीं करने वाले उनके सहपाठियों की तुलना में एक चौथाई ही थी। जो लोग रोजाना तीस मिनट जॉगिंग,साइक्लिंग,तैराकी करते है,वे सप्ताह में लगभग २००० कैलोरी जला देते हैं। खुशनुमा बुढ़ापा अधिक उम्र के साथ-साथ शारीरिक क्रिया कम होती जाती है। बुढ़ापे मे शारीरिक गतिविधि कम होने से हड्डियां कमजोर होने लगती है। ऐसे में अगर देखभाल ना की जाए तो ओस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियां भूरने लगने का रोग हो जाता है। इस वजह से फ्रेक्चर होने लगते हैं। चालीस साल की उम्र के बाद शरीर की हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है। महिलाओं में अधिकतर मेनोपोज की स्थिति में ओस्टियोपोरोसिस रोग हो जाता है। इसका कारण होता है उनमें ओस्ट्रोजन की कमी होना। यह रोग उन महिलाओं में ज्यादा होता है जिनकी बच्चेदानी हटा दी जाती है। यही वजह कि पुरुषों में बुढ़ापे में और महिलाओं में मेनोपोज के बाद कूल्हे के फ्रेक्चर ज्यादा होते हैं। इस रोग से बचने के लिए इन तीन बातों का ध्यान रखना होता है-खाने में केल्शियम और विटामिन की उचित मात्रा,नियमित कसरत और ओस्ट्रोजन लेना। पांचों वक्त की नमाज और तरावीह की नमाज अदा करने से फ्रेक्चर के जोखिम कम हो जाते हैं। नमाज ना केवल हड्डियों के घनत्व को बढ़ाती है बल्कि जोड़ों में चिकनाई और उनके लचीलेपन में भी इजाफा करती है। बुढ़ापे में चमड़ी भी कमजोर हो जाती है और उसमें सल पड़ जाते हैं। शरीर की मरम्मत की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। साथ ही रोगों से लडऩे की क्षमता में भी कमी हो जाती है। बुढ़ापे में शारीरिक गतिविधि कम होने से इन्सूलिन का स्तर भी कम हो जाता है। शरीर के विभिन्न अंग अपने काम में कमी कर देते हैं। इन्हीं कारणों के चलते बुढ़ापे में दुर्घटनाएं और रोग ज्यादा होते हैं। नमाज से मांसपेशियों में ताकत,खिंचाव की शक्ति और लचीलापन बढ़ता है। साथ ही सांस और रक्त प्रवाह में सुधार होता है। इस तरह हम देखते हैं कि नमाज और तरावीह अदा करते रहने से बुढ़ापे में जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। बुढ़ापे में कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। यही नहीं तरावीह की नमाज से सहनशक्ति,आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता में बढ़ोतरी होती हैं। हल्की कसरत के लाभदायक प्रभाव देखा गया है कि शरीर के अंग काम में ना लाने की वजह से पर्याप्त प्रोटीन मिलने के बावजूद शिथिल हो जाते हैं। जबकि नमाज और तरावीह अदा करने से शरीर के सभी अंग एक्टिव बने रहते हैं। इस तरह नमाज से ना केवल सहनशीलता बढ़ती है बल्कि थकावट भी दूर होती है। तरावीह की नमाज अदा करने से सांस क्रिया में भी सुधार होता है।

क्या ब्रह्माण्ड में हम अकेले हैं ?

क्या ब्रह्माण्ड में हम अकेले हैं ? हमारी धरती तरह तरह के जीवों से भरी हुई है। यहाँ अगर प्रोटोजोआ जैसे सरल संरचना वाले जीव हैं तो इंसान जैसे बुद्धिमान प्राणी भी मौजूद हैं। हम यह भी जानते हैं कि पृथ्वी हमारे सौरमंडल का एक छोटा सा ग्रह है। जो अपने सूर्य के गिर्द चक्कर लगा रही है। ब्रह्माण्ड में सूर्य जैसे अरबों तारे मौजूद हैं और उनके चारों तरफ चक्कर लगाते पृथ्वी जैसे ग्रह भी मौजूद हैं। तो फिर यह बात नामुमकिन नहीं कि वहाँ पर पृथ्वी की तरह जीव जंतु भी मौजूद होने चाहिए। और शायद मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी भी। साइंस इस संभावना से इंकार नहीं करती लेकिन ये भी हकीकत है कि अभी तक वह पृथ्वी से इतर कहीं जीवन की खोज नहीं कर पायी है। अब आईए देखते हैं मज़हब यानि कि इस्लाम इस बारे में क्या कहता है: हर नमाज़ में पढ़ी जाने वाली सूरे फातिहा की शुरुआत ही इस तरह हो रही है, ‘तमाम तारीफें उस अल्लाह के लिये जो तमाम आलमों (दुनियाओं) का रब है।’ यानि हमारी धरती के अलावा बहुत सी दुनियाएं हैं। आज से ग्यारह सौ साल पहले एक महान इस्लामी विद्धान हुए हैं, जिनका नाम शेख सुद्दूक(र-) है। बगदाद के निवासी शेख सुद्दूक (र-) ने तीन सौ से ज्यादा किताबें लिखीं इन किताबों में पैगम्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहो ताअला अलैहि व आलिही वसल्लम) की अनेक हदीसें व इमामों के क़ौल दर्ज हैं। इन्हीं में से एक किताब है ‘अल तौहीद’ जिसमें तौहीद यानि अल्लाह के बारे में गुफ्तगू है और उसकी कायनात के बारे में ज़िक्र है। यहाँ मैं उस किताब से कुछ ऐसी बातें आपके सामने पेश कर रहा हूं जो आज की साइंस के अनसुलझे सवालों के जवाब दे रही हैं। और ये भी साबित कर रही हैं कि आज भी इस्लामी इल्म साइंस से आगे है। 1- इमाम मोहम्मद बाकिर (अ-स-) इमाम हुसैन (अ-स-) के पोते थे। अपने एक सहाबी से बात करते हुए उन्होंने कुरआन की इस आयत ‘‘तो क्या हम पहली बार खल्क़ करके थक गये हैं, बल्कि ये लोग नयी तखलीक के बारे में शक में मुब्तला हैं।’’(सूरे क़ाफ, आयत 15) की तफ्सीर में बताया कि अल्लाह जब इस दुनिया को खत्म कर देगा और जन्नत वाले जन्नत में व जहन्नुम वाले जहन्नुम में चले जायेंगे तो अल्लाह इस दुनिया की बजाय एक नयी दुनिया बनायेगा और नयी मख्लूक पैदा करेगा जिनमें नर व मादा नहीं होंगे और ये लोग उसकी तौहीद के कायल होंगे। अल्लाह उनके लिये इस ज़मीन के अलावा एक ज़मीन पैदा करेगा जो उन का भार उठायेगी। और इस आसमान के अलावा एक आसमान पैदा करेगा जो उनपर सायाफिगन होगा। शायद तुम्हारा ख्याल ये हो कि अल्लाह ने यही एक दुनिया पैदा की है और ये भी तुम्हारे ज़हन में हो कि अल्लाह ने तुम्हारे अलावा कोई और इंसान पैदा नहीं किया। हाँ खुदा की क़सम अल्लाह ने दस लाख दुनियाएं और दस लाख आदम पैदा किये। तो तुम इन दुनियाओं के आखिर में हो और तुम सब आदमी हो। यानि इस्लाम ये पूरी तरह कनफर्म कर रहा है कि हमारी पृथ्वी के अलावा और भी दुनियाएं हैं जहाँ हमारे ही जैसे इंसान रहते हैं और वे सब तरक्की में हम से कहीं आगे हैं। यानि तरक्की में हमारी ज़मीन ही के इंसान सबसे ज्यादा पिछड़े हुए हैं। ज्ञात रहे कि शेख सुद्दूक (र-) कापरनिकस से छह सौ साल पहले पैदा हुए थे। कापरनिकस के ज़माने तक दुनिया यही समझ रही थी कि हमारी ध्राती ही ब्रह्माण्ड का केन्द्र है और सूर्य तथा दूसरे आकाशीय पिंड धरती के गिर्द चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसे में शेख सुद्दूक (र-) की उपरोक्त बातें बता रही हैं कि इस्लामी विद्वान दुनिया से सैंकड़ों साल आगे थे। 2- क्या पानी पृथ्वी के बाहर मौजूद है? इमाम जाफर अल सादिक(अ-स-) ने फरमाया कि पैगम्बर मोहम्मद(सल्लल्लाहो ताअला अलैहि व आलिही वसल्लम) की एक हदीस के मुताबिक तमाम आसमानों में समुन्द्र यानि पानी के विशाल ज़खीरे मौजूद हैं। हर ज़खीरे की गहराई कम से कम पाँच सौ सालों की यात्रा के बराबर है। अभी साइंस ये तय नहीं कर पायी है कि चाँद पर पानी मौजूद है या नहीं। लेकिन इस्लाम कनफर्म रूप से कह रहा है कि ब्रह्माण्ड में पानी के विशाल भंडार मौजूद हैं। ये भंडार सितारों से भी ज्यादा विशाल हैं क्योंकि इन्हें पार करने के लिये सैंकड़ों साल का वक्त चाहिए। साइंस कि नई खोजें ब्रह्माण्ड में पानी के ज़खीरों की संभावना बता रही हैं. इस तरह हज़ार साल पहले जन्मे इस्लामी विद्वान शेख सुद्दूक (र-) रसूल की हदीसों व इमामों के कौल के जरिये वो बातें बता रहे हैं जो आज की साइंस के लिये अभी भी एक पहेली हैं। अब एक बार फिर हम वापस आते हैं कुरआन पर। कुरआन की ये आयतें भी हमारी दुनिया से अलग रहने वाले जानदारों की बात कर रही हैं। 42-29 और उसी की निशानियों में से सारे आसमान व ज़मीनों का पैदा करना और उन जानदारों का भी जो उसने आसमान व ज़मीन में फैला रखे हैं और जब चाहे उनके जमा कर लेने पर भी क़ादिर है। 17-44 सातों आसमान व ज़मीन और जो लोग इनमें हैं उसकी(अल्लाह की) तस्बीह करते हैं। और सारे जहान में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो उसकी तस्बीह न करती हो मगर तुम लोग उसकी तस्बीह नहीं समझते। इसमें शक नहीं वह बड़ा बख्शने वाला है। उस रब की बारगाह में शुक्र के हजारों सजदे !

एलपीजी कनेक्शन के साथ जीवन बीमा ।

अगर आपके पास है एलपीजी कनेक्शन तो यह जानकारी जरुर रखिये ! क्या आप जानते हैं कि एलपीजी कनेक्शन के साथ आपको इंश्योरेंस का लाभ भी मिलता है। शायद नहीं। दस में आठ उपभोक्ताओं को यह नहीं पता, लेकिन आप जान लें कि एलपीजी कनेक्शन के साथ ही आपका बीमा हो जाता है। गैस सिलेंडर से दुर्घटना होने की स्थिति में आपको 40 लाख रुपए तक का क्लेम मिल सकता है। इतना ही नहीं सामूहिक दुर्घटना की स्थिति में क्लेम की राशि 50 लाख रुपए तक हो सकती है। दुर्घटना के बाद इलाज का खर्च गैस कंपनी उठाती है... लेकिन प्रायोगिक रूप से ऐसा नहीं होता। जानकारी के अभाव में न तो उपभोक्ता इसकी सूचना कंपनी को नहीं देते। सरकार और गैस कम्पनी उपभोक्ता से यह जानकारी छुपाते है.

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लिकं ।

Kya Hum Musalmaan h ?

क्या सचमुच हम मुसलमान है?, क्या हम इस्लाम के बताये रास्ते पे चल रहे है? अगर आज हम अपने आप को और दुनिया के 61 इस्लामिक मुल्क के 1.50 अरब की आबादी मुसलमान को देखे तो जवाब न मे मिलता है. मुसलमान उसे कहते है जो एक अल्लाह और आखिरी रसूल हज़रत मुहम्मद( सल्ल) को माने और इस्लाम के जो अरकान है उन पर अमल करे. इस के अतिरिक्त मुसलमानो का चरित्र भी अच्छा होना चाहिये. चरित्र जब ही अच्छा हो गा जब आप मे ये खूबीया हो गी जैसे ईमानदारी, हार्दिकता, वादा निभाना, सच्चाई और इंसाफ. लेकिन बदकिस्मती से पूरे इस्लामी दुनिया मे अब नही पायी जाती.जब तक ये खूबीया मुसलमानो मे थी दुनिया ने देखा के हम कैसे पूरे विशव पे छा गये थे.

सब से पहले आप ईमानदारी को देखिये, एक समय था जब मुसलमान को सब से ज्यादा ईमानदार समझा जाता था, आज मुसलमानो से ईमानदारी खत्म हो गयी है. आप देखियेके  अरब मुल्को मे खाने पीने का सामन और दवा सभी अमेरिका और युरोप से आते है. डेनमार्क की कंपनी साउदी अरब और दुबई मे डेरी प्रॉडक्ट और गोश्त सप्लाइ करती है. पूरी मुस्लिम देश जर्मनी,अमेरिका,फ्रॅन्स,स्विज़ेर्लंड से दवाये लेती है. अब आप देखिये के एक इस्लामिक मुल्क दूसरे इस्लामिक मुल्क से कोई समान नही लेती, क्यो के व़े जानते है की क्वालिटी अच्छी नही होती. मुसलमान होने के बावजूद हम मक्का मे हज और उमरे के दौरान हाजियो के जेब काटते है  वहा पे भीख मांगते है और पाकिस्तानी मुसलमान को हज़ और उमरे के नाम पे जा कर चरस, अफीम, हेरोईन ले जाते है, पकड़े जाने पे सब को फांसी भी हो जाती है.

पहले मुसलमान की खासियत हार्दिकता थी अब मुसलमानो मे ये खत्म हो गयी है और हम तंगदिल हो गये है. अब मुसलमानो मे भी छोटे-बड़े, गोरे काले, अमीर-गरीब जैसे भेद भाव आ गये है. अरबी और गैर अरबी मुसलमानो मे भेद भाव जितना इस्लामिक मुल्को मे पाया जाता है पूरे दुनिया मे कही देखने को नही मिलती. दुनिया मे बहुत से ऐसे  इस्लामी मुल्क है जहा लोग 30-40 साल से रह रहे है उन्हे नॅशनॅलिटी नही देते, आप मुसलमान हो कर भी अरब मुल्को की लड़कियॉ से शादी नही कर सकते. आप स्वंय अपना बय्पार नही कर सकते बगैर किसी local Sponser की सहायता से , मुसलमान 72 फिरको मे बंटी है और हर एक दूसरे को काफ़िर कहता है. सब की अपनी अपनी मस्जिदे और अपना क़ब्रिस्तान है. आज सब से ज्यादा बेचैनी इस्लामिक मुल्को मे है. 61 इस्लामिक मुल्को मे से 25 मुल्को मे बादशहत है.

इस्लाम दुनिया का पहला मज़हब है जी शिक्षा पे सब से ज्यादा जोर दिया है. क़ुरान की पहली आयत ही नाज़िल हुई के इक़रा-पडो. हदीस है के तुमे अगर शिक्षा लेने के लिये चीन भी जाना पड़े तो जाओ मगर आज शिक्षा मे इस्लामिक मुल्क और पूरे मुसलमान भारत के भी और क़ौमो से बहुत पीछे है.ईसाई दुनिया के 40% नौजवान यूनिवर्सिटी तक पहुंचते है जब के इस्लामी दुनिया के 2% नौजवान यूनिवर्सिटी तक पहुंचते है.इस्लमि दुनिया मे  20 लाख लोगो मे से सिर्फ 230 लोगो को विज्ञान की जानकारी है जब के अमेरिका मे 10 लाख लोगो मे 4 हज़ार विज्ञान की जानकारी है पूरे इस्लामिक मुल्क मे 35 हज़ार रिसर्च स्कॉलर है जब के सिर्फ अमरीका मे इन की सांख्या 22 लाख है.इस समय दुनिया के 200 बड़ी यूनिवर्सिटी मे एक भी यूनिवर्सिटी मुस्लिम मुल्क का नही .

इस्लाम ने सब से ज्यादा जनहित,परोपकार या समाज सेवा के लिये मुसलमानो को प्रेरित किया है. इस्लाम ही एक ऐसा धर्म है जिस मे गरीबो की मदद के लिये ज़कात देने को कहा गया है, मगर अफसोस आज मुसलमान इन कामो से दूर होता जा रहा है. अगर हम दुनिया के 50 सब से जयदा दान देने वालो की सूची देखे तो उस मे एक भी मुस्लिम का नाम नज़र नही आता है साथ मे कोई हमारे हिन्दू भई भी नही है इस कम मे सिर्फ ईसाई धर्म के  लोग आयेज है. रेडक्रॉस जो दुनिया का सब से बड़ा मानवीय संगठन है. इस के बारे मे बताने की जरूरत नही है. आप को मालूम हो गा के बिल- मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन मे बिल गेट्स ने 10 बिलियन डॉलर से इस फाउंडेशन की बुनियाद रखी है. जो के पूरे विशव के 8 करोड़ बच्चो के सेहत का ख्याल रखाता है, इस के अतिरिक्त एड्स और आफ्रिका मुल्क के गरीब देशो को खाना और मानवीय सहायता पहुचता है. दुनिया इस समय दांग रह गयी जब वॉरेन बफे ने इस फाउंडेशन को 18 बिलियन डॉलर दान मे दे दी मतलब वॉरेन ने 80 % अपनी पूँजी दान मे दे दी. दुनिया के 50 सब से ज्यादा दान देने वाले मे एक भी  मुसलमान नही है अरब का अमीर शहज़ादा अपना स्पेशल जहाज पर 500 मिलियन डॉलर खर्च कर सकता है मगर मानवीय सहायता के लिये आगे नही आ सकता है.

इस्लाम ने मुसलमानो को जिन बुराईयो से रोका था आज सब से ज्यादा मुसलमानो मे और इस्लामिक मुल्को मे पायी जा रही है. शराब, जुवा, ब्याज, अय्याशी से इस्लाम मे सख्त मनाही है, मगर आज  मुसलमानो मे आम हो गया है.यही कारण है के आज हम अल्लाह के सब से अच्छी क़ौम होने के उपरान्त भी पूरी दुनिया मे हम बदनाम और रुसवा हो रहे है. हमारी नमाज़े और दुवाये कबूल नही हो रही है. इस लिये मुसलमानो को चाहिये के इस्लाम के बताये रास्ते पे चले, शिक्षा पे धयान दे, बुरे कामो से तौबा करे और वक़्त के साथ चले अगर ऐसा न हुआ तो वो दिन दूर नही जब मुसलमा दुनिया से पिछड़ जाये गे इसी लिये अभी भी समय है के मुसलमान जागे नही तो बहुत देर हो जाये गी. बकौल एक शाएर तुम्हारी दास्तां तक न हो गी दस्तानो मे.

jhoot ka pardafaaash ?

चलिए सभी मुसलमान भाई को मुबारक हो कि आइंस्टाइन शिया मुसलमान हो गए। जल्द ही न्यूटन और गैलिलीयो के भी सुन्नी मुसलमान होने की घोषणा हो सकती है। ये अलग बात है कि फिर दोनों एक-दूसरे को काफ़िर क़रार दे दें। असल में ये सभी बाते हमारे inferiority complex को दर्शाता है। बचपन से हम सुनते आ रहे है कि जब चांद पर नील आर्मस्ट्रांग पहुंचा तो उसने वहां आजान की आवाज सुनी, वापस आ कर वह मुसलमान हो गया। इसी तरह यूरी गागरिन, सुनीता विलियम्स, माइक टिसन, माइकल जैक्सन और बहुत बड़े हस्तियो के बारे मे हम ने मुसलमान होने की खबर सुनी। ये सारी बातें आगे जा कर झूठी साबित हुई।

हम आइंस्टाइन को मुसलमान बनाने पर तुले हुए हैं और उसकी उपलब्धियां अपने खाते में डालना चाहते हैं। एक मुस्लिम वैज्ञानिक अब्दुस्सलाम जो भारत मे पैदा हुए और आजादी के बाद पाकिस्तान चले गए और जो भौतिक विज्ञान के वैज्ञानिक थे, उस को उसके काम के लिये नोबेल प्राइज़ दिया गया और ये विश्व का पहला मुस्लिम वैज्ञानिक था। बस उसकी गलती थी कि वह अहमदिया फिरका को मानता था, उसके खिलाफ मुल्लाओ ने पाकिस्तान मे मोर्चा खोल दिया और उसके क़ाफ़िर होने का फ़तवा दे दिया गया और इन मुल्लाओ ने हुकूमत पर इतना दबाव डाला कि आखिरकार 1976 में जब पाकिस्तान संसद ने अहमदी को गैर-मुस्लिम करार दिया तो डॉक्टर अब्दुस्सलाम विरोध में पाकिस्तान छोड़कर लंदन चले गए। 21 नवम्बर 1996 में 70 साल की उम्र में अब्दुस्सलाम की मृत्यु गंभीर बीमारी के कारण  लंदन में हुई, उन्हें पाकिस्तान में ही दफनाया गया। इस तरह हम ने एक मुसलमान को काफ़िर बना दिया और आइंस्टाइन को मुसलमान बना रहे है।

असल मे इस्लाम को मुल्लाओ ने जितना नुक़सान पहुचाया है और किसी ने नहीं। शिक्षा को इस्लाम में अहम बताया गया है लेकिन उससे ही मुल्लाओं ने दूर कर दिया। शिक्षा में मुसलमान कितने पीछे है, आप खुद इस से अंदाजा लगाये के  Higher Education  तक 98% यहूदी पहुंचते है, ईसाई 42% , हिन्दू 11% और मुसलमान 2 % तक ही पहुंचते है। जबकि आबादी के अनुसार हम विश्व मे दूसरे नम्बर पर हैं।
1800-1920 के बीच हुए बड़े वैज्ञानिक जिनके आविष्‍कार दुनिया को आधुनिक दौर मे ले गए, इन वैज्ञानिकों में सभी या तो यहूदी या ईसाई है, एक भी मुस्लिम वैज्ञानिक नही हैं। अब एक नज़र इस पर भी डालिए कि दुनिया के सबसे बड़े इनाम नोबेल प्राइज़ भिन्न-भिन्न क्षेत्रों मे वैज्ञानिकों को दिया जाता है उसमे हमारी क्या स्थिति है। 1901-2011 तक नोबल प्राइज़ भौतिकी, रसायन, मेडिकल क्षेत्र 375 वेज्ञानिकों को दिया गया है जिस मे सिर्फ 4 हिन्दू और 1 मुस्लिम विज्ञानिक को मिला है बाकी वैज्ञानिक या तो यहूदी या ईसाई है। इससे पता चलता है के शिक्षा के क्षेत्र मे हम बहुत पीछे है।

सच बात यह है कि हम मुसलमान इस समय 'खिसयानी बिल्ली खंभा नोचने' के जैसे हैं, क्योंकि इस आधुनिक विश्व और मानवता मे हमारा कोई सहयोग नही है , क्योंकि हम शिक्षा मे आगे नहीं है इसलिए दूसरे की उपयोगिता हम अपने खाते मे डालना चाहते हैं। इसलिए जब भी होता है हम किसी को भी मुसलमान या क़ाफ़िर बना देते है। इस तरह के बेवक़ूफी वाले काम खत्म होने चाहिए। अपनी गलती और अपनी कमी को मान कर सुधार करने चाहिए और शिक्षा मे आगे आना चाहिए ताकि हम भी और क़ौमों के बराबर खड़े हो सकें

Dev Daasi ?

देवदासी प्रथा पर कुछ लिखूं इससे पहले आइए एक आंध्राप्रदेश के देवदासी की व्यथा उसी की जुबानी सुनते है। "आंध्र प्रदेश की लक्ष्मम्मा अधेड़ उम्र की हैं और उनके मां-बाप ने उन्हें मंदिर को देवदासी बनाने के लिए दान कर दिया। इसकी वजह लक्ष्मम्मा कुछ यू बयां करती हैं, मेरे माता-पिता की तीनों संतानें लड़कियां थीं। दो लड़कियों की तो उन्होंने शादी कर दी लेकिन मुझे देवदासी बना दिया ताकि मैं उनके बुढ़ापर का सहारा बन सकूं। आज भी आंध्र प्रदेश में, विशेषकर तेलंगाना क्षेत्र में दलित महिलाओं को देवदासी बनाने या देवी देवताओं के नाम पर मंदिरों में छोड़े जाने की रस्म चल रही है। लक्ष्मम्मा मानती हैं कि उनका भी शारीरिक शोषण हुआ लेकिन वो अपना दर्द किसी के साथ बांटना नहीं चाहतीं। जिस शारीरिक शोषण के शिकार होने के सिर्फ जिक्र भर से रुह कांप जाती हैं, उस दिल दहला देने वाले शोषण को सामना ये देवदासियां हर दिन करती हैं। ये दर्द इकलौती लक्ष्मम्मा का नहीं है, आंध्र प्रदेश में लगभग 30 हज़ार देवदासियां हैं जो धर्म के नाम पर शारीरिक शोषण का शिकार होती हैं।

देवदासी शब्द का प्रथम प्रयोग कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में मिलता है। मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी इस शब्द का उल्लेख मिलता है। फिर भी इस प्रथा की शुरुआत कब हुई, इसके बारे में सुनिश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।  भारत में सबसे पहले देवदासी प्रथा के अंतर्गत धर्म के नाम पर औरतों के यौन शोषण को संस्थागत रूप दिया गया था। इतिहास और मानव विज्ञान के अध्येताओं के अनुसार देवदासी प्रथा संभवत: छठी सदी में शुरू हुई थी। ऐसा माना जाता है कि अधिकांश पुराण भी इसी काल में लिखे गए।देवदासी का मतलब है 'सर्वेंट ऑफ गॉड', यानी देव की दासी या पत्नी। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ के लिए सामग्री-संयोजन, मंदिरों में नृत्य आदि के अलावा प्रमुख पुजारी, सहायक पुजारियों, प्रभावशाली अधिकारियों, सामंतों एवं कुलीन अभ्यागतों के साथ संभोग करती थीं, पर उनका दर्जा वेश्याओं वाला नहीं था।  इसका प्रचलन दक्षिण भारत में प्रधान रूप से था ।इस अश्लील तमाशे के पीछे लोगों का यह विश्वास था कि मंदिर में देवदासी के साथ प्रणय-क्रीड़ा करने से गांव पर कोई विपत्ति नहीं आती और सुख-शांति बनी रहती है।यह कुप्रथा भारत में आज भी महाराष्ट्र और कर्नाटक के कोल्हापुर, शोलापुर, सांगली, उस्मानाबाद, बेलगाम, बीजापुर, गुलबर्ग आदि में बेरोकटोक जारी है। कर्नाटक के बेलगाम जिले के सौदती स्थित येल्लमा देवी के मंदिर में हर वर्ष माघ पुर्णिमा जिसे 'रण्डी पूर्णिमा' भी कहते है, के दिन किशोरियों को देवदासियां बनाया जाता है। उस दिन लाखों की संख्या में भक्तजन पहुँच कर आदिवासी लड़कियों के शरीर के साथ सरेआम छेड़छाड़ करते हैं। शराब के नशे में धूत हो अपनी काम पिपासा बुझाते हैं। 

कालिदास के 'मेघदूतम्' में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंआरी कन्याओं का वर्णन मिलता है, जो संभवत: देवदासियां ही रही होंगी।प्रख्यात लेखक दुबॉइस ने अपनी पुस्तक 'हिंदू मैनर्स, कस्टम्स एंड सेरेमनीज़' में लिखा है कि प्रत्येक देवदासी को देवालय में नाचना-गाना पड़ता था। साथ ही, मंदिरों में आने वाले खास मेहमानों के साथ शयन करना पड़ता था। इसके बदले में उन्हें अनाज या धनराशि दी जाती थी। प्राय: देवदासियों की नियुक्ति मासिक अथवा वार्षिक वेतन पर की जाती थी।मध्ययुग में देवदासी प्रथा और भी परवान चढ़ी। सन् 1351 में भारत भ्रमण के लिए आए अरब के दो यात्रियों ने वेश्याओं को ही 'देवदासी' कहा। उन्होंने लिखा है कि संतान की मनोकामना रखने वाली औरत को यदि सुंदर पुत्री हुई तो वह 'बोंड' नाम से जानी जाने वाली मूर्ति को उसे समर्पित कर देती है। वह कन्या रजस्वला होने के बाद किसी सार्वजनिक स्थान पर निवास करने लगती है और वहां से गुजरने वाले राहगीरों से, चाहे वो किसी भी धर्म अथवा संप्रदाय के हों, मोल-भाव कर कीमत तय कर उनके साथ संभोग करती है। यह राशि वह मंदिर के पुजारी को सौंपती है।
देवदासियों को अतीत की बात मान लेना गलत होगा। दक्षिण भारतीय मंदिरों में किसी न किसी रूप में आज भी उनका अस्तित्व है। स्वतंत्रता के बाद पैंतीस वर्ष की अवधि में ही लगभग डेढ़ लाख कन्याएं देवी-देवताओं को समर्पित की गईं। ऐसी बात नहीं है कि अब यह कुप्रथा पूरी तरह समाप्त हो गई है। अभी भी यह कई रूपों में जारी है। कर्नाटक सरकार ने 1982 में और आंध्र प्रदेश सरकार ने 1988 में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया था, लेकिन मंदिरों में देवदासियों का गुजारा बहुत पहले से ही मुश्किल हो गया था। 1990 में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 45।9 फीसदी देवदासियां महानगरों में वेश्यावृत्ति में संलग्न मिलीं, बाकी ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मजदूरी और दिहाड़ी पर काम करती पाई गईं।।
 
धर्म के नाम पर हज़ारों वर्षों से लोगों का तरह-तरह से शोषण होता रहा है। तरह-तरह की ऐसी प्रथायें चलती रहीं, जो अमानवीय थीं। इक्कीसवीं सदी और पोस्ट मॉडर्निज़्म के इस दौर में भई धर्म के प्रभाव में कोई कमी नहीं आई है। धर्म अभी भी व्यापक जन समुदाय को अज्ञान और अंधविश्वास के अंधकार में धकेलने का कारगर माध्यम बना हुआ है। अब ईसाई धर्म के तहत ही देख लीजिए चर्च और कॉन्वेंटस में नन रहने लगीं जो चिरकुमारियों के नाम से जानी जाने लगीं ! कैथोलिक चर्च में भी सैक्स से सम्बंधित खेल के खुले-खुलासे होते आ रहे है ! दूर क्यों जाते है कुछ दिनों पहले ही एक नन ने पादरियों के व्यभिचार का सनसनीखेज खुलासा किया था ! नन ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि पादरी ननों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ! इससे जब वह गर्भवती हो जाती है ! तो बच्चों को गर्भ में ही मार देते है ! बौद्ध धर्म की कारगुजारियां पूरी तरह तंत्र पर ठहर गई और तंत्र प्रणाली में औरतों की देह को मोक्ष का नाम देकर औरतों को छला जाने लगा !जैन धर्म के संतों के साथ साध्वियां भी होती थी उन्हे भी छला जाने लगा।
 
 
इस तरह हम कह सकते है के इस्लाम धर्म सिर्फ एक ऐसा मजहब है जिस ने इन सब बुराईयो को खत्म 

Ahmedi Nejaad S Sikhe Indian Politicians ?

ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अहमदी निजाद ने अपने दौर मे जिस सादगी,किफायत और कुशल तरीके से मुल्क को चलाया है ये विशव के सभी देशो खास तौर से इस्लामी मुल्को के रहनुमाओ के लिये रोल-मॉडेल की हैसियत रखता है. अहमदी निजाद ने बड़े बड़े कारनामे अंजाम दिये. अमेरिका की तरफ से लगाई गयी पाबंदियो का सामना जिस तरह किया वो एक मिसाल है. अहमदी निजाद एक गरीब घर मे पैदा हुए थे उन के पिता लोहार थे , मगर उन्हो ने शिक्षा जारी रखी और ट्रांसपोर्ट मे उन्हो ने पी . एच . डी की. मनसिपल कमिशनर से राजनीति पारी शुरु की और ईरान के राष्ट्रपति बन गये.

अहमदी निजाद जब राष्ट्रपति का पोस्ट संभाला तब दुनिया के सामने उनकी सादगी,सभ्य, विनम्रता दुनिया के सामने आई. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हो ने सब से पहले ऑर्डर जारी किया के राष्ट्रपति भवन मे सादगी अपनायी जाये. महीने का करोड़ो का बजट राष्ट्रपति भवन का था उस मे 80% कटौती कर दी. महंगे कालीन, फर्निचर को हटा दिया गया. इन से पहले स्पेशल जहाज राष्ट्रपति के लिये होता था विदेसी दौरे के लिये. अहमदी निजाद ने उसे ईरान एरलाइन को दे दिया खुद और अपने मंत्रियो को ऑर्डर दिया के के वी आम एरलाइन मे सफर करे. विदेशी दौरे के लिये भरी-भड्कम भीड़ को खत्म कर दिया, जितने लोगो की जरूरत है उतने ही लोग जाये गे. सरकारी दौरे मे परिवार को नही ले जा सकते थे. अहमदी निजाद ने अपनी सुरक्षा मे भी कमी कर दी. जब वी राष्ट्रपति बने तो उन्हो ने अपने पूँजी की छोषणा की उन के पास एक 40 साल पुराना टूटा-फूटा मकान, 30 साल पुरानी कार और बैंक बैंक खाते ज़ीरो बॅलेन्स है उस मे उन को वही पैसे आते है जो उन के प्रोफेसर की सॅलरी है जो के 250 अमेरिकी डॉलर है. वी अपने काम के लिये कभी भी सरकारी गाड़ी का इस्तमाल नही किया. वी अपने पुराने मकान मे ही रहना चाहते थे मगर सेक्यूरिटी ने उन्हे माना कर दिया के आप की सुरक्षा इस घर मे नही हो सकती आप को राष्ट्रपति भवन मे ही रहना होगा.

अहमदी निजाद ने कभी भी सरकारी खाना नही खाया वी अपनी पत्नी के हाथ का बना हुआ खाना खाते थे. दुनिया उस समय देख कर हैरत मे रह गयी जब उन्हो ने अपने बच्चो की शादी बहुत ही सादे अंदाज मे की मेहमानो का स्वागत सिर्फ फूल के गुलदस्ते से किया गया , खाने-पीने का कोई इंतजाम नही था. राष्ट्रपति बनने से पहले वी यूनिवर्सिटी मे प्रोफेसर थे , उस के बाद भी वी यूनिवर्सिटी पड़ने जाते थे सिर्फ वो प्रोफेस्सेर् की ही तन्खवह लेते थे, राष्ट्रपति ओहदे का तन्खवह नही लेते थे. आप एई धयन मे रखिये के वी इरान जैसे मुल्क के राष्ट्रपति थे जहा तेल का भंडार है.

अब देखिये अपने मुल्क के राजनेताओ को खुद को गरीब मुल्क के गरीब जनता का लीडर बताते है मगर बादशाहो की तरह जिंदगी बिताते है. अमीर नेता और अमीर होता जाता है और जो गरीब नेता आते है वी भी कुछ दिनो मे करोड़पति हो जाता है. हमारे राजनेताओ को अहमदी निजाद से सीख लेनी चाहिये के किस तरह सादगी से हुकूमत की जाती है.

Mahmood Gaznavi ?

सुल्तान महमूद ग़ज़नवी मध्यकालीन इतिहास का सब से विवादित चरित्र रहा है. इस के मुतल्लिक भी इतिहास अलग अलग है जैसे ज्यादातर मुस्लिम या मुस्लिम इतिहासकर  उसे एक बहुत बड़ा मुसलमान बादशाह और  इस्लाम प्रचाराक मानता है, इसी तरह हिन्दू या हिन्दू इतिहासकर उसे मूर्ति-विध्वंस के रूप मे पेश करता है और हिन्दू विरोधी पेश करने मे कोई कसर नही छोड़ता है.

एक और इतहास है जो अंग्रेज़ो ने अपने काल मे लिखी जो  DIVIDE AND RULE  POLICY  के तहत  हिन्दू और मुसलमानो मे मतभेद पैदा करने के लिये लिखी गयि.कुच तटस्थ इतिहासकर  ने भी महमूद ग़ज़नवी के बारे मे लिखा है.

इस मे कोई शक नही के उस के अधिकतर हमले भारत के बड़े बड़े मंदिरो पे होते थे, जहा के मंदिरो की मूर्तिया तोड और लुट कर चला जाता था और ये भी सत्य है के उस समय मंदिरो मे सब से अधिक धन होते थे महाराजो के खजानो से भी अधिक. इस लिये मन लिया गया के महमूद ग़ज़नवी सिर्फ मंदिरो पे हमला करता था और लुट कर अपार धन संपत्ती ग़ज़नी ले गया. कुछ इतिहासकारो का कहना है के थानेसर और सोमनाथ के मंदिरो मे विशाल मूर्तिया थी उस के अंदर सोना, हीरे जवाहरात भरे थे इस लिये उस ने मूर्तीय तोड़ी. जब के कुछ तटस्थ इतिहासकारो का कहना है के मूर्तिया ठोस थी और वी भी मिट्टी के बने हुए थे और उस पे सोने की कलई कराई गयी थी. इतिहास मे आता है के सुल्तान थानेसर की मूर्तिया अपने साथ ग़ज़नी ले गया और उसे तोड कर घोड़ा दौड़ के मैदान मे फेंक दिया. सोमनाथ के मूर्टीयो के बारे मे इतिहासकार का कहना है के सुल्तान ने उस के दो टुकड़े किये, फिर दो के चार, चार के आठ इस तरह् 32 टुकड़े कर बाहर फेंक दिया और उन पर से अपनी फ़ौज गुजर दी.

ये तो सब को मालूम है के सुल्तान ने भारत पे 17 हमले किये मगर बहुत ही कम किताबो मे बताया गया है के महाराजा जयपाल ने सब से पहले ग़ज़नी पे हमला किया  था उस समय सुल्तान सुबुक्तगीन का हुकूमत था. सुबुक्तगीन ने मारते समय अपने बेटे महमूद ग़ज़नवी को वसीयत की थी भारत के राजो महाराजो की नजर ग़ज़नी पे है इस लिये तुम इन लोगो को चैन से बैठने नही देना, नही तो तुम्हे ये नही छोड़े गे. इस लिये इतिहासकारो का कहना है के महमूद ग़ज़नी भारत पे बार बार हमला कर यहा के राजो महारजो को परेशान करता था और  उस के साथ अकूत धन भी मिलता था.

भारत के प्रसिद्ध इतिहासकर हबीब और निज़ामी ने अपनी पुस्तक मध्य कालीन इतिहास मे महमूद ग़ज़नी के बारे जो लिखा है आप सब के लिये पेश है.
  • महमूद ग़ज़नी अपने बाप सुबुक्तगीन का बेटा नही था और इसे खुद भी शक था जिस से वो बहुत प्रेशान रहता था.
  • महमूद ग़ज़नी एक नौकरानी के पेट से पैदा हुआ था जो सुबकटगीन की पत्नी नही थी.
  • महमूद ग़ज़नी को इस्लाम धर्म से कोई मतलब नही था.
  • महमूद ग़ज़नी भारत लुट मार के लिये आया करता था.
  • महमूद ग़ज़नी को क़्यामत और आखरत पे यक़ीं नही था.
  • महमूद ग़ज़नी ने मारते समय लुटी हुई दौलत को अपने सामने ढेर लगा कर बहुत रोया.
  • महमूद ग़ज़नी भी एक राजा ही जैसा था वो भी शराब और औरतो का परस्टर थं
  • अह्मुद ग़ज़नी सिर्फ हिन्दुओ से ही नही मुसलमानो से भी लड़ा क्यो के उस का मक़सद हुकूमत का विस्तार करना 

इधर अरबी, ईरानी और मुस्लिम इतिहासकारो ने जिस मे अलबेरूनी, फ़रिश्ता,गावेज़ी,अत्‍बी और बेक़हा जैसे इतिहासकारो ने महमूद ग़ज़नी के बारे मे जो लिखा है वो भी आप के लिये पेश है.
  • सुल्तान महमूद एक कट्टर इस्लामी शक्स था.
  • सुल्तान हट का पक्का था जो सोच लेता उसे पूरा करता था और उसे अपना विरोध पसंद नही था.
  • सुल्तान बहुत ही बहादुर और समझदार था , युद्ध की महारत से भरपूर था.
  • युद्ध मे खुद फ़ौजइयो के साथ लड़ता था.
  • महमूद ग़ज़नी इंसाफ के मामले मे सख्त था वो किसी को माफ नही करता था. एक बार उस के बेटे मसूद के खिलफ् किसी केस मे अदालत मे बुलावा आया तो नही गया, महमूद ने सिपाहियो को हुक्म दिया के उसे गिरफ्तार कर के लाया जाये ए इस समय एक मुजरिम है बादशाह का बेटा नही.
  • सुल्तान महमूद इल्म से और आलिमो से बहुत लगव था उस ने ग़ज़नी मे दुनिया के बड़े बड़े आलिमो को बुलाता था और उन्हे इनाम से नवाजता था.
  • महमूद ग़ज़नवी ने भारत मे कभी भी हिन्दुओ को इस्लाम क़ाबुल करने का हुक्म नही दिया.
  • महमूद ग़ज़नवी के फ़ौज मे जो हिन्दू फ़ौजी दस्ते थे उन्हे धार्मिक आजादी थी के वी अपने धर्म का पालन करे.

मैंने विभिन्न इतिहासकारो के महमूद ग़ज़नवी के बारे मे लिखे गये विचार आप के लिये पेश किया ताके महमूद ग़ज़नवी को समझने मे आसनी हो गी मगर सभी इतिहासकर मानते है के महमूद ग़ज़नवी बहुत ही अच्छा यौद्धा और शासक था उस ने अपने 28 साल के शासन मे सैकडो लड़ाइया लड़ी और अपने हुकूमत को विस्तार किया. मध्य कालीन इतिहास की जब भी बात हो गी महमूद ग़ज़नी का जिक्र अवश्य हो गा.

Modi K naam Par Kyo Chup h BJP?

अब ये सवाल हर तरफ पूछा जा रहा है के आखिर क्या कारण है के भाजपा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्दर मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर  पेश  नही कर रही है. अब तो ये बात किसी से छुपी भी नही है के भाजपा मे दो ग्रुप है. एक ग्रुप खुल कर मोदी का समर्थन कर रही है और द्सरा दबे-छिपे अंदाज मे  मोदी का विरोध कर रही है. मोदी के समर्थको का कहना है के मोदी के नाम का  एलान करने की कोई जरूरत नही है क्यो के पूरी पार्टी मे मोदी का विरोध और मुक़ाबला करने वाला कोई नही है. मोदी पहले दिन से ही भाजपा का लीडर बन चुका है. आडवाणी ने विरोध किया तो देखा क्या अंजाम हुआ, उन्हे बाद मे खुद झुकना कर मोदी के समर्थन मे आना पड़ा क्यो के आर . एस . एस ने खुले तौर पे कह दिया के वी मोदी के समर्थन मे है. इस के बाद मोदी को कोई चॅलॅंज करने वाला नही रहा.

मोदी के नाम का एलान भाजपा इस लिये भी नही कर रही है के अगर मोदी को पूरे भारत मे सफलता नही मिलती है तो मोदी की छवि खराब हो जाये गी जिस का नुक़सान गुजरात मे हो सकता है और गुजरात भी भाजपा के हाथ से निकल सकता है. सब से मुख्य कारण मोदी के नाम के एलान नही किये जाने का ये है के अगर मोदी को उम्मीदवार बनाया गया तो दूसरी पार्टिया भाजपा को सपोर्ट नही करे गी. अगर 2014 चुनाव मे भाजपा को बहुमत नही मिली और कुछ सीटो के जरूरत पड़ी तो, मोदी क्व करण समर्थन नही मिले गा, अगर मोदी नही रहे तो बहुत पार्टिया समर्थन देने के लिये तैयार हो जाये गी और भाजपा किसी दूसरे को प्रधानमंत्री बना सकति है.भाजपा को इस का भी एहसास है के मोदी को सिर्फ आगे बडाने पर एक प्रमुख्य सहयोगी जनता दल-यू ने उन का साथ छोड़ दिया जिस का नुक़सान भाजपा को हो सकता है, इस तरह और भी सहयोगी उस से अलग हो सकते है जैसे अकाली दल, शिव सेना भी मोदी को पसंद नही करती. कर्नाटक के जनता दल-एस को भी एहसास हो गया के भाजपा को समर्थन करने के करण उसे नुक़सान हुआ है अब वो भी भाजपा से अपना नाता तोड़ने मे मूड मे है.

जैसा के हम सभी जानते है के भाजपा मे दो ग्रुप है, इस लिये भी मोदी के नाम के एलन नही किया जेया रहा है के पार्टी के टूटने का खतरा है क्यो के भाजपा के बहुत से वरिष्ट नेता मोदी के खिलाफ है. भाजपा भी अब  मोदी को  आगे बडाना नही चाहती क्यो के मोदी किसी की बात नही सुनते और न ही किसी के अधीन काम करना चाहते है. गुजरात मे वी मुख्यमंत्री की तरह नही बादशाह की तरह हुकूमत चलाते है.गुज्रात मे किसी भी विधायक को कोई भी पवर नही है कुछ भी करने से पहले मोदी से पूछना पड़ता है. हम कह सकते है के गुजरात मे  मोदी की तानाशाही है. गुजरात तक तो ठीक है लेकिन दूसरे राज्यो मे इन की बात कौन सुने गा. 

भाजपा का मोदी के नाम के एलान नही करने का एक और मुख्य करण है के, अभी भारत मे बड़े-छोटे लगभग 8 सर्वे न्यूज़ चॅनेल और पत्र- पत्रिकाओ द्वारा कराये गये है जिस मे मोदी के नाम पर भाजपा को सिर्फ 10-15 सीट का लाभ हो रहा है और बहुमत से बहुत दूर है. सर्वे देख कर भाजपा के होश उड गये है और उन को एहसास हो रहा है के मोदी के नाम का लाभ नही मिलने वाला है बल्के भाजपा को नुक़सान हो रहा है. इस लिये मोदी के नाम का एलान को रोक दिया गया है, बल्के अब प्रधानमंत्री के नाम पर भाजपा का कहना है के हमारे पार्टी मे मोदी क्या बहुत से योग्य उम्मीदवार है जो प्रधानमंत्री बन सकता है इस लिये भाजपा अब प्रधानमंत्री के नाम के एलान चुनाव के बाद ही करेगी.

Congress ?

मशहूर कहावत है के जब किसी मुल्क पर बुरा समय आता है तो वहा के हुक्मराणो के दिमाग और आंखो पे पर्दा पड जाता है और वे गलत काम करने लगते है. ठीक उसी तरह जैसे आज कांग्रेस की हुकूमत कर रही है.विपक्ष जिस समस्या को भी उठती है और हुकूमत की गलती और उस के होने वेल वित्तीय हानि की तरफ ध्यान आकर्षित करती है  तो सरकार को चाहिये के अपनी गलती को माने और सुधार करे, उल्टा सुधार करने की जगह सरकार फाइल ही गायब करा देती है ताके न रहे गा बांस न बजे गी बांसुरी.

अब देखिये 2 G स्पेक्ट्रम केस के भी वही फाइल गायब हुए है जिन पे प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर थे. होना तो ये चाहिये था के प्रधानमंत्री खुद हिम्मत से काल लेते और कहते के मे ने अपने मंत्रियो पे विश्‍वास करते हुए हस्ताक्षर किये थे, इस ब्यान से उन की छवि और सुधारती और जनता को भी इस सरकार के प्रति एक अच्छा संदेश जाता. मगर सरकार ने इस समस्या को खुद पेचीदा बना दिया. कोयला घोटाला मे भी सरकार द्वारा चालाकी देखने के करण खुद फंस गयी. इस के भी वही फाइल गायब हो गये जिस मे प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर थे. विपक्ष ने सवाल उठाया के आखिर वही फाइल क्यो गायब होते है जिस मे प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर होते है. जब हंगामा हुआ तो हुकूमत ने एक कमिटी बनाने का एलान कर दिया के आगे क्या किया जाये. सवाल पैदा होता है के जब हुकूमत ने खुद ही फाइल गायब कराये है तो वी क्यो कर मिले ग.उपर से कमिटी बैठा कर जनता के पैसे की बर्बादी करना है ती ऐसे हुकूमत को सत्ता मे रहने का कोई हक नही है. अब देखना है के इस समस्या पे  और सुप्रेम कोर्ट क्या करती है और हुकूमत उन को क्या जवाब देती है.

मशहूर वॅकिल रम जेठ मालानी ने एक लेख लिखा है अन्तर्स-देवास ( ANTRAS-DEVAS) इसरो ISRO मामले पर, मगर सरकार ने आज तक इस को जनता को नही बताया है. इसरो मे काम करने वेल और कुछ विज्ञानिको ने हुकूमत की आंख मे धूल झोंक कर एक कंपनी बनाई जिस का नाम अंतर्स रखा और देवास नामी कंपनी से सौदा कर "S BAND" देने का समझौता किया. सरकार को मालूम ही नही के S BAND क्या होता है और कितने रुपये कमा कर दे गी. भारत माता के  विज्ञानिको ने  पैसे की ललच मे 2 लाख करोड़ का चूना लगाया. सरकार को चाहिये था के इस घोटाले को जनता के सामने लाती और पूरे मामले की छानबीन कर मुज़तिं विज्ञानिको को जेल पहुचती, मगर इस ने पूरे मामले को ही छुपा दिया. इस खामोशी का लाभ उठाते हुए देवास ने 2 अरब डॉलर के हर्जाने का दावा कर दिया और 2 Gटेलिकॉम ने 1 अरब डॉलर का हर्जाना कर दिया. 2G टेलीकॉम ने देवास के बहुत से शेयर खरीद रखे है. इस तरह हम कह सकते है के चोर कोतवाल को ही डांट रहा है. दोनो कोम्पनिया जो हुकूमत से रकम मांग रही है  वो 18 हज़ार करोड़ है. हुकूमत की गलती ने अपने आप को फंसा लिया. हुकूमत पे केस करने वालो मे हिन्दुस्तान के बड़े बड़े लोग है. इस की जांच करने के लिये जो कमीटी बनयै गयी है उस मे  इसरो का एक चपरासी भी मेम्बर है. होना तो चाहिये था के हम देवास से हर्ज़ाना वसूलते, उल्टा वो हम से माग रहा है. क्यो के हमारी सरकार ना अहल है.

 आप को मालूम ही हो गा के चीनी फ़ौजी अरुणाचल प्रदेश मे 30 किलो मीटर तक अंदर आई और कुछ दिनो तक रही, उन का विरोध करने पे उल्टा हमे ही धमकाया और वापस जाने से इंकार कर दिया. आखिर सरकार ने इस  मामले को भी जनता से छुपाये रखा. पाकिस्तानी फ़ौज जब चाहती है हमारे उपर गोली बारी करती है हमला कर फ़ौजइयो को शहीद कर देती है, मगर हम पाकिस्तान को उस का जवाब नही दे पाते. आखिर क्यो.मुल्क की अर्थ्ब्यस्था दिन ब दिन गिरती जा रही है रुपया का मूल्य कौडियो के बराबर हो गया है मगर हुकूमत को इस की फिक्र नही है और उसे रोकने के लिये सरकार की तरफ से कुछ कदम भी नही उठाया जेया रहा है.

अगर हम देखे तो कांग्रेस ने जो 40 साल तक हुकूमत की है उस मे  के 5 साल सब से बुरे गुजरे है. हुकूमत हर क्षेत्र मे नाक़ाम हुई है और ये आखिर 5 साल मे जितने घोटाले हुए है उस ने सभी घोटालो का रेकॉर्ड तोड दिया है. भारत भगवान भरोसे हो गया है. किसी को भी मुल्क की फिक्र नही है सभी लोग अपने स्तर पे मुल्क को लुट रहे है. विपक्ष भी इतनी मजबूती से हुकूमत का विरोध नही कर पा रही है. अब मुल्क मे बदलाव की जरूरत है और होनी भी चाहिये, मगर हम सभी जानते है के अगर एक चोर हटे गा तो दूसरा भी चोर ही आये गा कोई कम कोई ज्यादा, क्यो के ए भारत के नियती मे लिखी है.

Halaala K Naam Par LUT Rahi H ijjat '

ब्रिटेन में तलाक और हलालह समस्या बहुत गंभीर हो गया है और पति से तीन  तलाक  पाने वाली महिलाएं इस समस्या को हल करने के लिए जब कुछ मौलवियों के पास जाती हैं हलालह के नाम पर उनसे अपनी  इज्जत लिटा बैठती हैं . हलालह के लिए एक रात की दुल्हन बनने वाली महिलाएं अपने घरों में सम्मान प्रतिष्ठा खो बैठती हैं और अक्सर मानसिक रोगों का शिकार हो जाती हैं , लंदन , बर्मिंघम , ब्रैडफोर्ड सहित कई शहरों में गुप्त हलालह केंद्र स्थापित हो जो के कारण महिलाओं अपमान गंभीर समस्या बन गई , उनके हलालह केंद्र में महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाया जाता है , हजारों घर उजड़ गए , लेकिन वास्तविक विद्वानों यह निंदा करते हैं . इस संबंध में  लंदन की ओर से जाने वाली एक शोध में सनसनीखेज खुलासे हुए हैं . युद्ध ब्रिटेन में हलालह के नाम पर पाकिस्तानी और अन्य मुस्लिम महिलाओं का अपमान को लेकर जिन विद्वानों से संपर्क किया और उनसे पुष्टि चाही तो लगभग सभी इस बात पर सहमत हुए कि हलालह के नाम पर मुसलमान महिलाओं अपमान किया जा रहा है . हालांकि उलमा और वास्तविक मौलवी इस समस्या को इसलिए उजागर नहीं कर रहे कि सारी मुस्लिम समुदाय ज्यादा बदनाम होगी जो पहले से ही बाल सेक्स गरोमनग और अन्य मामलों की वजह से बहुत खराब हालात से गुजर रही है .

रिसर्च के अनुसार कुछ तथाकथित मौलवियों ने लंदन , बर्मिंघम , ब्रैडफोर्ड और कुछ अन्य शहरों में गुप्त रूप से हलालह केंद्र स्थापित किए गए हैं जिनमें सलाह के लिए आने वाले लोगों को गुमराह किया जाता है . पुरुषों के साथ आने वाली महिलाओं को भी यह कहकर गुमराह किया जाता है कि उनकी अपने पति से तलाक हो चुका है . इसलिए वह अब अपने पति के पास उस समय तक वापस नहीं जा सकती जब तक उनका निकाह किसी अन्य व्यक्ति के साथ न हो और वह नियमित रूप एक रात के लिए किसी और दुल्हन न बन जाएं . उस पर कई कई बच्चों की मां और उनके वे पति सख्त परेशान होते हैं जो अपने गुस्से में आकर एक साथ तीन  तलाक दे चुके हैं . दोनों पुरुष और महिला अपने बच्चों कारण अपना घर बर्बाद नहीं करना चाहते और धार्मिक आदेशों का भी प्रतिबंध करना चाहते हैं . कुछ मौलवी उनके मुसलमान और सरल  महिला की कमजोरी का अवैध लाभ उठाते हैं और उन्हें हलालह कराने की सलाह देते हैं . जब उन्हें बताया जाता है इससे उनकी बदनामी होगी . जाहिर है कि जब एक औरत एक रात के लिए किसी और के साथ रहेगी तो वह उसे बाद में ब्लैकमेल भी कर सकता है . इसलिए तथाकथित मौलवी इन महिलाओं को सलाह देते हैं कि वे उनके साथ एक रात के लिए हलालह लें . कई बार इन मौलवियों और महिलाओं के पति के बीच मौखिक रूप से यह समझौता होता है कि वह हलालह के बाद अपनी पत्नी को सुबह वापस ले जाएंगे . यह मौलवी जब महिला के साथ शादी कर लेते हैं तो उनमें से कुछ उन पर अपना अधिकार जताने लगते हैं और तलाक देने से इनकार कर देते हैं . उन्हें जब उनके अनुबंध की याद दिलाई जाती है तो वह महिलाओं के पूर्व पति से भारी मात्रा की मांग करते हैं . जबकि कुछ मौलवी केवल अपनी यौन संतोष के लिए महिलाओं को कई कई दिन अपने पास रखते हैं . पर जब महिला मौलवी से हलालह करने के बाद वापस अपने पति के पास जाती है तो दोनों के संबंध खराब हो जाते हैं और वे अन्य पुरुषों के साथ बिताए जाने वाले दिनों की गणना तक मांगते हैं . पर मजबूर महिलाएं अपने बच्चों की वजह से पुरुषों के साथ बिताया करती हैं और कुछ मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाती हैं.

यह भी पता चला है कि खुफिया हलालह केंद्र यह तथाकथित मौलवी हमेशा हलालह के शिकार की तलाश में रहते हैं और इनमें कुछ एक दूसरे को हलालह उपहार के रूप में प्रस्तुत करते हैं . पता चला है कि यह खुफिया केंद्र कुछ मदरसों और कुछ मौलवियों ने अपने घरों में भी खोल रखे हैं . उन लोगों के साथ संपर्क हैं और वह नियमित अपने एजेंट समुदायों के भीतर छोड़े होते हैं जो मजबूर और बेबस लोगों को उनके पास लाते हैं . अगर महिलाएं हलालह पर तैयार हो तो उनमें से कुछ को उनके एजेंटों को उपहार में दे दिया जाता है .अहले हदीस के शफीक रहमान का कहना है कि अगर  समस्या को हल नहीं निकाला गया तो यह जहर धीरे धीरे सारी मुस्लिम समुदाय के भीतर फैल जाएगा और हलालह जैसी व्यभिचार को धर्म का हिस्सा बना दिया जाएगा . उन्होंने  बताया कि वह एक लंबे समय से गैर शरई प्रक्रिया के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और हमेशा लोगों को इस तरह के गैर शरई गतिविधि से दूर रहने की हिदायत देते हैं . उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि हलालह के नाम पर महिलाओं का यौन शोषण किया जा रहा है . 

जैसा के हम सभी जानते है के इस्लाम मे तलाक़ को ही सब से बुरा समझा जाता है. अल्लाह के नजदीक तलाक़ को हलाल क़रार देते हुए भी इसे बुरा माना गया है. इस्लाम मे हललाह के बारे मे कही कुछ नही मिलता, मगर कुछ नक़ली और तत्काथित मौलानो ने हललाह को धार्मिक रूप दे कर औरतो का शारीरिक शोषण करते है और धर्म का डर देखा के अपनी हवस को पूरा करते है. अब समय है के सभी उलेमाओ को सामने आ कर जो धर्म के नाम पे अधर्म हो रहा है उसे रोकना चाहिये.अगर मुसलमान क़ुरान के बताये अनुसार तलाक़ दे तो उमीद है के 95% तलाक़ हो गा ही नही.मुसलमानो को चाहिये के क़ुरान पड़े और समझे.

musalmaan aur firka ?

इस्लाम के मानने वाले सभी एक अल्लाह और आखरी पैगम्बर मोहम्मेद सल्ल. को मानते है फिर भी 72 फिरको मे इस्लाम बांट गया है. शिया, सुन्नी, देओबन्दि, बरेली. अहले हदीस, वहाबी और न जाने क्या क्या. अब इन सभी फिरको के उलेमा या धर्मगुरु एक दूसरे को काफ़िर क़रार देते है.इस तरह देखा जाये तो पूरे दुनिया के मुसलमान काफ़िर हो गये. इस्लाम खतरे मे है नारा लगने वाले को कौन बातये के इस्लाम को किसी से खतरा नही है बल्के ए जो फ़िरक़ा है इस से सब से ज्यादा इस्लाम को नुक़सान पहुंच रहा है. हद तो है के भारत के बहुत से मस्जिद मे देओबन्दियो को बरेलीयो के मस्जिद मे जाने पर पाबंदी है. कही कही तो तख्ती भी लगी हुई है. ए देख कर याद आता है जैसे मंदिरो मे शूद्र के जाने की पाबंदी है.

खैर मे आप को बताने जा रहा हु के हमारे उलेमा या धार्मिक गुरु ने ( हर फिरका के) लोगो ने इतिहास मे ऐसे ऐसे मशहूर मुस्लिमो हस्तियो को कुफ़्र का फ़तवा दिया है जिन्हो ने इस्लाम के उत्थान मे महत्पूर्ण रोल रहा है. ए मशहूर हस्तिया हर क्षेत्र धार्मिक, शिक्षा, राजनीति, खेल, आदि के क्षेत्र मे बड़ा नाम किया है.

  • सूफी और आलम जुनैद बग़दादी पर कुफ़्र  का फतवा लगाया गया
  •  अल अबू हनीफ़ा को अज्ञानी , नवाचार , कपटी और काफिर करार दिया गया और कैद किया गया
  • अल शाफई के खिलाफ फतवा जारी किया गया और जेल में डाल दिया गया
  • इमाम अहमद बिन हंबल को काफिर करार देकर 28 माە कैद में डाला गया
  • इमाम मलिक पर कुफ़्र का फतवा लगा
  • इमाम बुखारी पर कुफ़्र का फतवा लगाया गया .
  • प्रसिद्ध सूफी अब्दुल कादिर जिलानी पर कुफ़्र का फतवा लगाया गया .
  • इब्न राबी पर कुफ़्र का फतवा लगाया गया और कहा गया कि उनके कुफ़्र पर शक करे  भी काफिर है
  • प्रसिद्ध सूफी कवि जलालुद्दीन रूमी को काफिर कहा गया
  •  प्रसिद्ध फारसी कवि जामी को काफिर कहा गया
  • मंसूर हलाज को काफिर करार देकर सूली चढ़ा दिया गया .
  • मौलाना शिबली नोमानी और मौलाना हमीद उद्दीन के बारे मौलाना अशरफ थानवी ने फतवा जारी किया कि दोनों लोगों काफिर हैं और उनका मदरसा ालासलअह मदरसा अविश्वास और ज़नदीकह है
  • अल गज़ाली ने जब अहयाٴलिलोम नामक किताब लिखी तो  का फतवा लगाकर उनकी किताबें जला डाला गईं
  •  अल इब्न Taymiyyah पर मिस्र के 18 मफ़्तयों कुफ़्र का फतवा लगाया
  • शाە वली युल्लाह मुहद्दिस देहलवी पर कुफ़्र का फतवा लगाया गया
  •  सैयद अहमद बरेलवी पर कुफ़्र का फतवा लगाया गया
  •  शाە इस्माइल पर कुफ़्र का फतवा लगाया गया
  •  सर सैय्यद अहमद खान के विचारों के कारण आप पर कुफ़्र का फतवा लगाया गया
  •  मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब नजदी पर अविश्वास का फतवा लगाया गया
  • मोलामा अबुल कलाम आजाद को मौलाना अनवर कश्मीरी नेगमराە करार देकर उनकी टिप्पणी उल पढ़ने से मना किया
  •  अल्लामा मोहम्मद इकबाल पर लाहौर के बरेलवी आलम ने अविश्वास का फतवा लगाया
  • संस्थापक पाकिस्तान मोहम्मद अली जिन्ना को अहरारी मौलवी मज़हर अली घटना ने " कअफ़्राृम " कहा जबकि कायदे आजम की मौत पर मौलाना मोदोदी ने जनाज़ە में भाग लेने से इनकार किया और जमाते इस्लामी ने कायदे आजम की जयंती मृत्यु को एक " दिवस कृतज्ञता " मनाया और शुकराने के नफिल भुगतान कएٔ
  • मौलाना मुदोदि को बेदीन , गुस्ताख़ साथी, नास्तिक , यहूदी करार दिया और उनकी पार्टी को नष्ट इस्लाम से बताया .
  • मशहूर विज्ञानिक अब्दुस्सलाम को काफ़िर कहा गया
  • भारत के राष्ट्रपति अब्दुल कलम को काफ़िर कहा जाता है.



ये सूची बहुत लम्बी हो सकती है अगर सभी नाम लिखा जाये जिसे मौलनाओ ने काफ़िर होने का फ़तवा दे दिया. हमारे उलेमाओं ने उन सभी मशहूर मुस्लिम हस्तियाओ को काफ़िर बना दिया जिन्हो ने अपने क्षेत्र मे कम किया, जैसे मुसलमानो मे आधुनिक शिक्षा लाने वेल सर सैय्यद अहमद को कुफ़्र का फ़तवा देने के लिये भारत के एक मौलाना माक़्क़ा से उन के खिलाफ फ़तवा ले कर आये. सभी फ़िरक़ा के धर्म गुरुओ और उलेमाओ से अपील है के फ़तवा का खेल छोड़ कर मुसलमानो के शिक्षा, आर्थिक आदि क्षेत्रो के विकास के लिये काम करे.

Philistiene ?

जब तक हम इतिहास का ध्यानपूर्वक समीक्षा न लें हम इस विवाद की पृष्ठभूमि समझने में कभी सफल नहीं हो सकते . फ़िलिस्तीन में यहूदी लोगों आगमन लगभग 1250 साल ईसा पूर्व होती है . यूं फ़िलिस्तीन सदियों तक यहूदियों और फलसटियनों का संयुक्त देश रहा है . सातवीं शताब्दी में उसे अरबों ने जीत लिया . उसकी बाद फिलिस्तीन लगभग पांच  सदियों तक राशदीन , उमवी , अब्बासी और फातमी खिलाफत  में अरब साम्राज्य का हिस्सा रहा  और इसके बाद यह तुर्क के अधीन आ गया . अरब अवधि में अधिकांश फिलीस्तीनी ईसाई से मुसलमान हुए  लेकिन यहूदी अपने धर्म पर कायम रहे .  हर  कोई भी यहूदी को अपने यहा  बसता देखना पसंद नहीं करता था . उसकी पहली वजह यह थी कि कैथोलिक ईसाई उन्हें मसीहा का हत्यारा समझते थे और दूसरा कारण यह है कि तेज व्यापार और वैज्ञानिक दिमाग के कारण बहुत जल्दी अपनी आप को आर्थिक रूप से इतना मजबूत कर लेते थे और स्थानीय लोग उनसे ईर्ष्या करना शुरू कर देते थे . 

प्रथम विश्व युद्ध में तर्क राज्य तुर्क केंद्रीय शक्तियों या Central Powers का सहयोगी था कि जर्मनी और ऑस्ट्रिया , हंगरी के गठबंधन में शामिल था . युद्ध में अरब विद्रोह के परिणामस्वरूप 1916 यतक पूरी मध्य पूर्व के साथ फिलिस्तीन राज्य भी राज्य तुर्क के हाथ से जाता रहा . अंततः 1918 यमें प्रथम विश्व युद्ध केंद्रीय शक्तियों की हार पर समाप्त हुई . 1916 यमें Sykes - Picot समझौते के तहत फिलिस्तीन , जॉर्डन और इराक कोबर्तानवी जनादेश जबकि लेबनान और सीरिया कोफ़्रानस के जनादेश दिया जाना तय पाया जो एक निश्चित अवधि में मुक्त देशों में वहां के स्थानीय लोगों सौंप दिया जानाथा . 1917 में ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर बीलतुर एक फिलिस्तीन  राज्य स्थापना का प्रस्ताव जो अरबों और यहूदियों का संयुक्त देश बन सके . यह घोषणा Balfour Decleration कहलाता है . जिसे विभिन्न मामलों में पहली लीग ऑफ नेशन और बाद में UNO का समर्थन मिला . इस घोषणा में कहा गया है कि दुनिया भर से यहूदी निवासियों फिलिस्तीन हस्तांतरण और फैलाने खानाबदोश अरब समूहों फलस्न में नागरिकता लेने तथा धार्मिक व नागरिक स्वतंत्रता और धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया जाएगा .

फिलिस्तीनी राज्य के लिए जो क्षेत्र पता चलता इसमें वर्तमान इसराइल , पश्चिमी पट्टी और गाजा के अलावा नदी जॉर्डन के पूर्व का वह क्षेत्र भी शामिल था जो अब जॉर्डन राज्य कहलाता है . यह क्षेत्र अपनी भौगोलिक दृष्टि से वर्तमान शाम कल क्षेत्र या इराक के आधे क्षेत्र के बराबर था . ब्रिटिश जनादेश फिलिस्तीन को वह अधिकार दिए जो उन्हें राज्य तुर्क ने वंचित रखा था . राज्य तुर्क के सौ साल दमनकारी तर्क गुलामी ने फिलिस्तीनियों को इतना कुचला था कि वह बहुत पिछड़ेपन और अशिक्षा का शिकार जिप्सी जीवन गुजार रहे थे . उन्हें तर्क और अन्य अरब कौमें एक पृथक राष्ट्रीय हतयत न देखती थीं . ब्रिटेन दी गई इस नई नागरिक स्वतंत्रता से फिलिस्तीनियों ने एक्सेल के साथ लाभ उठाया .

 फ़िलिस्तीन और अन्य अरब देशों ने लीग ऑफ नेशन ( League of Nations संयुक्त राष्ट्र या UNO पहली देशों के संगठन का नाम था) के यहूदियों फिलिस्तीन हस्तांतरण का फैसला मानने से इनकार कर दिया .1918 में पेरिस में होने वाले विश्व शांति सम्मेलन में अरब प्रतिनिधि ने कहा "या तो हम यहूदियों को समुद्र में धकेल देंगे या वे हमें  सेहरा वापस भेजें . " यरूशलेम के फिलीस्तीनी नेता आरिफ पाशा रजानी ने कहा कि " यहूदियों साथ रहना अरबों असंभव है . वह जहां कहीं भी बस रहे हैं वे वहाँ अवांछित लोग हैं . क्योंकि वे जहां भी जाते हैं वहां स्थानीय लोगों का आर्थिक रूप से खून चूसती है . अगर लीग ऑफ नेशन ने उनकी प्रवास को न रोका तो फ़िलिस्तीन में उनके खून की नदी बहा दिए जाएंगे . " लीग ऑफ़ नेशन ने अपनी प्रस्ताव पर अमल जारी रखा . हालांकि अरब प्रतिरोध के कारण यहूदियों फिलिस्तीन की ओर पलायन की प्रक्रिया बहुत धीमी हो गया . 

उसकी बाद 1940 के दशक के मध्य तो यहूदियों सिर पर कई कयामतें लेकर आई . उनकी साथ नाजी यूरोप  में अत्याचार किया जिनके उल्लेख मानवता कांप उठती है . लेकिन उनका ज़िक्र हमारी यहाँ कभी नहीं होता .  . इन घटनाओं इसराइल राज्य के गठन को अनिवार्य बनाने का सबब बने . फ़िलिस्तीन की पहली वितरण: ऐतिहासिक फिलिस्तीन का क्षेत्र नदी जॉर्डन के दोनों पक्षों की भूमि शामिल था . प्रारंभिक बीलतुर घोषणा के समय फिलिस्तीन का क्षेत्र लगभग वर्तमान शाम क्षेत्रफल के बराबर व्यापक था , जबकि यहां की कुल आबादी दस लाख स कुछ अधिक शामिल थी जो लगभग 10 प्रतिशत यहूदी लोग थे . इस लिहाज से यह एक गैर आबाद और पिछड़े क्षेत्र था जहां अगर किसी चीज़ की भरमार थी तो वह जमीन थी . हमारे यहाँ अक्सर लोग इसराइल ब्रिटेन पैदा की एक प्रलोभन साबित करने की कोशिश करते हैं 

1921 में मध्य पूर्व के इतिहास में एक ऐसी घटना घटी जो अरब देशों और खुद फिलिस्तीनियों की फ़िलिस्तीन की संप्रभुता आंदोलन से प्रेम का पर्दा चाक करता है . राज्य तुर्क के अधीन पालन फिलिस्तीन का नदी जोर्डन के पूर्वी क्षेत्र Vilayet of Syria का एक हिस्सा था . प्रथम विश्व युद्ध के अंत में ब्रिटेन के युद्ध सहयोगी हजाज़ के हाकिम हुसैन शरीफ ( शरीफ मक्का) की बेटी अमीर फैसल ने सीरिया में हाशमी राज्य घोषित किया और यहां से Greater Syria आंदोलन शुरू भी हुआ . फलस्नीी नेता अमीन लहसीनिय इस आंदोलन का समर्थक था . इस आंदोलन के सिद्धांत के अनुसार सभी फिलिस्तीन सहित नदी जॉर्डन दोनों किनारों क्षेत्रों शाम का एक प्रांत होना चाहिए था . लेकिन युद्ध अंत से पहले ही सहयोगी देशों के धर्मी न होने वाली Sykes - Picot समझौते के अनुसार शाम को फ्रांस के जनादेश दिया जाना तय हो चुका था . इस समझौते का सम्मान करते हुए ब्रिटेन ने 1920 में शाम को फ्रांस जनादेश के हवाले कर दिया और अमीर फैसल के स्थापित किए हुए सिंहासन शाम ( Hashemite Kingdom of Syria ) का समर्थन करना माफी गए . फ्रांस निर्धारित समय में शाम सीरियाई नागरिकों के हाथों सौंपना चाहता था . उसने द्वीप नुमा अरब के अमीर को वहाँ शासक स्वीकार नहीं किया और Maysalun की लड़ाई में अमीर फैसल को हरा कर उसकी बादशाहत को खत्म कर दिया . फ़िलिस्तीन ब्रिटिश जनादेश का हिस्सा था . अरब हाकिमों ने ब्रिटेन पर जोर डाला कि वह अमीर फैसल को Transjordania का शासक बना दें .

जैसा कि हम उल्लेख कर चुके हैं मुख्य बीलतुर घोषणा के अनुसार फिलिस्तीन की प्रस्तावित राज्य में नदी जोर्डन के पूर्वी तट क्षेत्र शामिल होना था जो कि उस समय Transjordania कहलाता था और फिलिस्तीनियों और यहूदियों का संयुक्त देश होना था . अब अरब देशों के दबाव में आकर ब्रिटेन फिलिस्तीन की पहली वितरण और 1921 में Emirate of Transjordan नाम से एक इमारत बनाकर अमीर फैसल को वहाँ शासक बना दिया ( बाद में अमीर फैसल को इराक का और उसके भाई अब्दुल्ला को पार जोर्डन के शासक बनाया गया ) . 1946 में यह इमारत जोर्डन के राज्य में तब्दील हो गई .1951 यतक यह एक British Protectorate रहे और बाद में एक स्वतंत्र राज्य की शक्ल अख्तियार गई . ऐतिहासिक जॉर्डन कभी भी कोई अलग हतयत नहीं रही . वर्तमान जॉर्डन क्षेत्र हमेशा फ़िलिस्तीन का हिस्सा रहा था ( प्रथम विश्व युद्ध के दौरान Transjordania का दक्षिण क्षेत्र हजाज़ की इमारत में शामिल कर लिया गया था ) . फ़िलिस्तीन यह विभाजन जो अरब देशों ाीमापर हुई कई लिहाज से अद्भुत था . इस विभाजन के तहत फ़िलिस्तीन का लगभग दो तिहाई हिस्सा Transjordan को दी गई . न केवल यह कि अरब देशों पूरी तरह से वितरित समर्थक बल्कि उसकी संस्थापक थे , फिलिस्तीनी नेताओं को भी इस विभाजन पर कोई परेशानी नहीं हुई . अमीन ालहसीनिय जैसे फिलीस्तीनी आंदोलन के ठेकेदार ने उफ़ तक न की. बात सिर्फ इतनी थी कि यहां पर फ़िलिस्तीन को हथियाने वाले ख़ुद मुसलमान थे . फलसटियनयत सारा जुनून तो यहूदी खिलाफ ही जोश मारता है . यह घटना फ़िलिस्तीन राष्ट्रवाद के डखकोसले की कलई खोल देता है .

फ़िलिस्तीन की पहली विभाजन पर किसी फिलिस्तीनी कान पर जूं तक न रेंगी . जॉर्डन राज्य सिर्फ फ़िलिस्तीन के बड़े हिस्से यानी पूर्वी तट क्षेत्र में स्थापित होना पर संतोष नहीं किया बल्कि 1948 में उसने फिलीस्तीनियों से अपनी ज्यादा सहानुभूति व्यक्त इस प्रकार पश्चिमी किनारे की पट्टी ( West Bank ) पर कब्जा करके बैठ गया जो 1967 यतक निरंतर .1948 से शुरू होने वाली अरब आक्रामकता और इसराइल के हाथों पराजयों के परिणामस्वरूप लगभग 400,000 बेघर फिलिस्तीनी लोगों ने अपने भाई इस्लामी देश जॉर्डन में शरण ली . जॉर्डन ने अपनी मुस्लिम अरब भाइयों आतिथ्य कुछ यूं कि उन्हें शहरों में आने से रोके रखा और सीमा सहराई क्षेत्रों तक सीमित कर दिया . जॉर्डन सरकार और फिलिस्तीनी प्रवासियों की बीच मतभेद बढ़ते चले गए . 1969-70 में फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने कई जॉर्डन विमान अपहरण करके नष्ट कर दिया. सितम्बर 1970 में जॉर्डन सेना Ajlam और Jarash स्थानों पर कई हजार फिलीस्तीनियों का नरसंहार किया ( एक अनुमान के अनुसार मरने वालों की संख्या 25,000 से अधिक थी ) .

अधिकांश फिलीस्तीनी प्रवासियों को लेबनान में धकेल दिया गया . एक पाकिस्तानी बरगीडीर इस नरसंहार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया . इस बरगीडीर नाम ज़यायालहक था जिसने बाद में पाकिस्तानी सेना प्रमुख के पद तक तरक्की पाई और सत्ता पर कब्जा करके देश का राष्ट्रपति बना . लेकिन जोर्डन और खुद पाकिस्तानी सेना हाथों फिलिस्तीनियों के नरसंहार का कितने पाकिस्तानियों को पता है ? भला मुसलमान ही मुसलमान का हत्यारा कैसे हो सकता है ? मुसलमान का हत्यारा तो नास्तिक है हो सकता है . वास्तव में इस्राएल के राज्य और जॉर्डन दोनों फ़िलिस्तीन का हिस्सा थे .  फिलिस्तीनी अपनी पैतृक भूमि पर शरणार्थी बनकर रह गया, यह इस्लामी अरब भाईचारे का फल . जोर्डन फिलिस्तीनी स्वायत्त राज्य का कितना बड़ा समर्थक है, इसका अंदाज़ा जॉर्डन के राजा हसन अब्दुल्ला 1981 यके इस ऐतिहासिक बयान से हो सकता है " फिलिस्तीन जॉर्डन और जॉर्डन फ़िलिस्तीन, फ़िलिस्तीन की अलग से कोई हैसियत नहीं . "

नोट- फिलीस्तीन का इतिहास लिखने का मक़सद ये बताना है के अरब मुल्को के शासको की साजिश ने  ही फिलीस्तीन को बेघर किया है. जब  इसराएल ने देखा के अरब मुल्को की तरफ से कोई मदद नही है तो उस ने भी फिलीस्तीने के जमीनो पे क़ब्ज़ा  और फिलीस्तीनियो पे जुल्म शुरु कर दिया जो के जगजाहिर है।

Dharmik Dange Aur Musalmaan?

दुनिया में धार्मिक दंगों का होना कोई नई बात नहीं, जब से दुनिया का अस्तित्व है दंगे की शुरुआत हो गई और इसमें सभी धर्म शामिल है। इससे कोई धर्म और देश नहीं बचा है। अफसोस इस बात का है कि आज के इस दौर मे इस्लाम और मुसलमान को हर दंगे और फसाद के लिये जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आज पूरी दुनिया इस्लाम को बदनाम करने पर तुली है और इस तरह इस्लाम और मुसलमान को पेश कर रही है जैसे ये पूरे विश्व के लिये खतरा है। इसमें कोई शक नही है के इधर कुछ सालो से मुट्ठी भर मुसलमानो की उग्रवादी गतिविधियो के कारण इस्लाम और मुसलमान बदनाम हुए है।

मैंने सोचा के क्या वाकई मुसलमान विश्व के लिये खतरा हैं? क्या पूरे दुनिया में मुसलमानों ने सबसे ज्यादा खून-खराबा किया है? जब मैंने इतिहास का पन्ना टटोला तो जवाब न में मिला, बल्कि यूं कहें कि दुनिया मे जितनी हिंसा, दंगे और लोगो की हत्या दूसरे मुल्कों यूरोप, अमेरिका, चीन, अफ्रीका और अन्य धर्मो मे हुए है उस के सामने इस्लामिक देश और मुसलमान कही भी नही टिकते। बल्कि उसका 1% भी मुसलमान मुल्कों मे नरसंहार नही हुआ है।चीन मे 45-70 लाख इंसानों का 25 साल के अंदर हत्या कर दी गई, इसी तरह से हिट्लर ने 5 million यहूदियों का नरसंहार कर दिया। मगर विश्व की मीडिया को नही दिखता। आज मुसलमानों पर उंगली उठने वाले अपना इतिहास नही देखते कि उन्होंने धार्मिक दंगे के नाम पे करोड़ो लोग को मौत के घाट उतार दिया फिर भी पूरी दुनिया मुसलमान को बदनाम करने पर तुली हुई है।

नीचे आप लोगों के लिए धार्मिक दंगो की सूची दी जा रही है जिससे पता चलेगा कि धार्मिक दंगे किस-किस मुल्क मे हुए और कितने लोग मारे। याद रहे के इस सूची मे world war-1st और world war 11nd का जिक्र नही है।

Mao Ze-Dong (China, 1958-61 and 1966-69, Tibet 1949-50)49-78,000,000
Adolf Hitler (Germany, 1939-1945)12,000,000 (concentration camps and civilians deliberately killed in WWII plus 3 million Russian POWs left to die)
Leopold II of Belgium (Congo, 1886-1908)8,000,000
Jozef Stalin (USSR, 1932-39)7,000,000 (the gulags plus the purges plus Ukraine's famine)
Hideki Tojo (Japan, 1941-44)5,000,000 (civilians in WWII)
Ismail Enver (Ottoman Turkey, 1915-20)1,200,000 Armenians (1915) + 350,000 Greek Pontians and 480,000 Anatolian Greeks (1916-22) + 500,000 Assyrians (1915-20)
Pol Pot (Cambodia, 1975-79)1,700,000
Kim Il Sung (North Korea, 1948-94)1।6 million (purges and concentration camps)
Menghistu (Ethiopia, 1975-78)1,500,000
Yakubu Gowon (Biafra, 1967-1970)1,000,000
Leonid Brezhnev (Afghanistan, 1979-1982)900,000
Jean Kambanda (Rwanda, 1994)800,000
Saddam Hussein (Iran 1980-1990 and Kurdistan 1987-88)600,000
Tito (Yugoslavia, 1945-1980)570,000
Suharto/Soeharto (Indonesian communists 1965-66)500,000
Fumimaro Konoe (Japan, 1937-39)500,000? (Chinese civilians)
Jonas Savimbi - but disputed by recent studies (Angola, 1975-2002)400,000
Mullah Omar - Taliban (Afghanistan, 1986-2001)400,000
Idi Amin (Uganda, 1969-1979)300,000
Yahya Khan (Pakistan, 1970-71)300,000 (Bangladesh)
Ante Pavelic (Croatia, 1941-45)359,000 (30,000 Jews, 29,000 Gipsies, 300,000 Serbs)
Benito Mussolini (Ethiopia, 1936; Libya, 1934-45; Yugoslavia, WWII)300,000
Mobutu Sese Seko (Zaire, 1965-97)?
Charles Taylor (Liberia, 1989-1996)220,000
Foday Sankoh (Sierra Leone, 1991-2000)200,000
Suharto (Aceh, East Timor, New Guinea, 1975-98)200,000
Ho Chi Min (Vietnam, 1953-56)200,000
Michel Micombero (Burundi, 1972)150,000
Slobodan Milosevic (Yugoslavia, 1992-99)100,000
Hassan Turabi (Sudan, 1989-1999)100,000
Jean-Bedel Bokassa (Centrafrica, 1966-79)?
Richard Nixon (Vietnam, 1969-1974)70,000 (Vietnamese and Cambodian civilians)
Efrain Rios Montt - but disputed by recent studies (Guatemala, 1982-83)70,000
Papa Doc Duvalier (Haiti, 1957-71)60,000
Rafael Trujillo (Dominican Republic, 1930-61)50,000
Bashir Assad (Syria, 2012-13)50,000
Francisco Macias Nguema (Equatorial Guinea, 1969-79)50,000
Hissene Habre (Chad, 1982-1990)40,000
Chiang Kai-shek (Taiwan, 1947)30,000 (popular uprising)
Vladimir Ilich Lenin (USSR, 1917-20)30,000 (dissidents executed)
Francisco Franco (Spain)30,000 (dissidents executed after the civil war)
Fidel Castro (Cuba, 1959-1999)30,000
Lyndon Johnson (Vietnam, 1963-1968)30,000
Maximiliano Hernandez Martinez (El Salvador, 1932)30,000
Hafez Al-Assad (Syria, 1980-2000)25,000
Khomeini (Iran, 1979-89)20,000
Robert Mugabe (Zimbabwe, 1982-87, Ndebele minority)20,000
Rafael Videla (Argentina, 1976-83)13,000
Guy Mollet (France, 1956-1957)10,000 (war in Algeria)
Harold McMillans (Britain, 1952-56, Kenya's Mau-Mau rebellion)10,000
Paul Koroma (Sierra Leone, 1997)6,000
Osama Bin Laden (worldwide, 1993-2001)3,500
Augusto Pinochet (Chile, 1973)3,000

Allah ?

मलेशिया मे एक अदालत ने अपने फैसले मे कहा है के गैर मुस्लिम भगवान के लिये शब्द ' अल्लाह'' का उपयोग नही कर सकते. अदालत ने फैसले मे कहा के गैर मुस्लिमो को शब्द अल्ल्लाह के उपयोग की अनुमति देने से समाज और मुल्क मे अराजकता फेल  सकता है.ईसाइयो का कहना है के मलाई भाषा मे गॉड की जगह वे अल्लाह शब्द का प्रयोग करती आ रही है और ऐसे फैसला उन के अघिकार का हनन है.

यह मामला तब सामने आया था जब एक मिलान भाषा का अखबार ईसाई भगवान के बारे में चर्चा करते हुए अल्लाह ' शब्द का इस्तेमाल किया था,तब मलेशिया सरकार ने कॅथोलिक ईसाइयो को अल्लाह शब्द के इस्तमाल पर रोक लगा दी.इस पर अखबार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जहां से दिसंबर 2009 में इसके पक्ष में फैसला हुआ  जिसके बाद देश में धार्मिक तनाव बढ़ा था और कई चर्चों और मस्जिदों पर हमले भी किए गए थे . जिसके खिलाफ सरकार ने उच्च न्यायालय में अपील कर दी थी .

2009 के केस को अपील का फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश मोहॅमेड इयादी कहा कि अल्लाह शब्द का उपयोग ईसाई धर्म का मुख्य हिस्सा नहीं है और न उन के धर्म मे इस शब्द का इस्तमाल हुआ, इस लिये अब गैर मुस्लिम ' अल्लाह शब्द का इस्तमाल नही कर सकते.कैथोलिक अखबार के संपादक रयूरंड लॉरेंस एंड्रयू का कहना है कि वह इस फैसले से निराश हैं और इसके खिलाफ अपील करेंगे . उन्होंने कहा कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों की बुनियादी स्वतंत्रता के संदर्भ में कानून में पीछे की ओर उठने वाला कदम है . '

अखबार के समर्थकों का कहना है कि मिलान भाषा में छपी बाईबल में ईसाइयों के भगवान के लिए अल्लाह शब्द का इस्तेमाल मलेशिया संघीय राज्य बनने से कहीं पहले से हो रहा है .
हालांकि कुछ मुस्लिम समूहों के अनुसार ईसाई ' अल्लाह' का उपयोग मुसलमानों को ईसाई धर्म की ओर आकर्षित करने के लिए भी करते हैं .बीबीसी संवाददाता के अनुसार सोमवार को अदालती फ़ैसले के अवसर पर कमरहٔ अदालत के बाहर 100 से अधिक मुसलमान इकट्ठे थे जिन्होंने फैसला आने के बाद खुशी से नारे और बैनर लहराई जिन पर लिखा था कि शब्द ' अल्लाह ' केवल इस्लाम के लिए आरक्षित है .गौरतलब है कि मलेशिया में पचास प्रतिशत से अधिक आबादी मुसलमानों की है जबकि देश में बसे चीन और भारत से संबंध रखने वाले लोगों की संख्या ईसाई , हिंदू धर्म और बौध धर्म के मानने वेल है.

बचपन से हम लोग यही सुनते आ रहे है के अल्लाह, भगवान, गॉड सब एक है जिस नाम से भी पुकारो. समझ मे नही आ रहा है के मलेशिया की अदालत ने ऐसा फैसला क्यो दिया जिस के करण पूरे जग मे मुसलमानो की बदनामी हो रही है. इस से मुसलमानो की संकीर्ण सोच दर्शाता है. अगर ऐसा ही रहा तो कुछ लोग ये भी अपील करना शुरु कर दे गे के पूरे दुनिया मे सिर्फ इस्लाम ही धर्म रहना चाहिये, बाकी धर्मो का वजूद ही नही होना चाहिये. ऐसा भी हो सकता है के कोई अदालत फैसला दे दे के जमीन, आसमान, पानी, हवा इसे अल्लाह ने बनाया है इस लिये इस का उपयोग सिर्फ मुसलमान ही करे गे. आज के इस दौर मे इस तरह के फैसले नही आने चाहिये और इस फैसले को पूरे मुसलमान और इस्लामिक मुल्को को इस की निन्दा करनी चाहिये.


GOD AND DISASTERS ?

भौतिक या मानवीय आपदा  जैसे भूकंप , लाउों का विस्फोट , तूफ़ानों का आना , बिजली गिरना , शहाब्यूं का गिरना , युद्ध , भूख , रोग आदि ? यानी , क्या आफ़तों का होना यह साबित करता है कि भौतिक दुनिया के पीछे कोई ऐसे व्यक्ति सक्रिय है जिसे भगवान कहा जाए?यहाँ मेरा मुद्दा बातचीत इस भगवान की शक्ति और क्षमता नहीं है बल्कि भगवान , प्राकृतिक आफ़तों और विज्ञान के नियमों का आपस में संबंध है .

प्राचीन ज़माने में मनुष्य ने आफ़तों का तर्क खोजने में मेहनत की , कभी उसे गमाँ बीता कि आपदाओं के कारण परमेश्वर की आपस में लड़ाई , तो कभी उसे लगा कि परमेश्वर ने उस पर अपना गुस्सा उतारा और उसे सजा दी है उस समय उसे खबर न थी कि ब्रह्मांड दरअसल कुछ ज्ञान नियमों के तहत चल रही है जिन्हें उसने आगे जाकर खोज करना है .

आज मनुष्य जानता है कि भूकंप दरअसल पृथ्वी की परतों के फिसलने के कारण आते हैं , बिजली गिरना केवल एक डसचअर्जनग प्रक्रिया आदि .. आज मनुष्य पहले से कहीं अधिक प्राकृतिक आपदाओं के पात्र विकासशील होने से पहले उनकी भविष्यवाणी और उनके प्रभाव का मुकाबला करने में सक्षम है जैसे ओजोन की परत छेद , ग्लोबल वार्मिंग , बीमारियां आदि. यह सब मानव वैज्ञानिक विकास और ब्रह्मांड के नियमों की खोज से ही संभव हो सका है , आज आदमी जितनी वैज्ञानिक प्रगति की है इसका कारण यह है कि वह खुद को अनुसंधान के काम में लगे और ब्रह्मांड के नियमों का सम्मान किया .आज सब जानते हैं कि सब कुछ कुछ नियम अधीन है जिनकी खोज जारी है .

इस संदर्भ में प्राकृतिक आपदाओं से के लिए भगवान से आवश्यक ? यानी उसे क्या करना चाहिए ?
क्या यह सभी भौतिक नियमों तोड़ देने चाहिए ?
क्या यह बिजली गिरना और लाउों का विस्फोट बंद कर देना चाहिए ?
क्या उसे जंगलों में लगने वाली आग बुझानी चाहिए ?
क्या यह शहाब्यूं का रुख दूसरी ओर मोड़ देना चाहिए ?
क्या यह आंधयाँ और तूफान रोकने चाहिए ?
क्या यह सभी भौतिक नियमों स्थगित करते हुए उन्हें निलंबित कर देना चाहिए ?
लेकिन अगर सभी भौतिक नियमों निलंबित कर दिए गए और ब्रह्मांड अपना संतुलन खो बैठी तो क्या होगा ?

अतीत में रोग बेहद खतरनाक हुआ करती थीं , आज चिकित्सा विज्ञान के विकास और वैक्सीन का आविष्कार की वजह से मनुष्य अतीत के खतरनाक बीमारियों का मुकाबला करने में सक्षम हो गया है , आज थोड़ी सी दवाई इन बीमारियों के इलाज के लिए पर्याप्त है कि अतीत में जान लेकर ही दम लेती थीं और अधिक अनुसंधान जारी ोसारी है .अतीत में भूकंप सब कुछ नाश करने के लिए पर्याप्त था लेकिन आज ऐसी इमारतें बनाई जा रही हैं जो ज़ल्सलों के झटके बर्दाश्त कर वैसी की वैसी ही खड़ी रहती हैं .अतीत का आदमी तो बस उड़ने के सपने ही देख सकता था जबकि आज मनुष्य गुरुत्वाकर्षण का मुकाबला करते हुए दिन कहीं न कहीं उड़ता फिरता है .

यह और ऐसे कई उदाहरण दिया जा सकता है कि मानव विकास सुविधा करती हैं , लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है कि अगर सब कुछ कुछ नियमों के अधीन जो संतुलन बनाए रखे हुए है तो हम भौतिक आपदाओं गलती गरदान हुए उसका आरोप भगवान में क्यों डाल देते हैं ?
लेकिन कहानी का एक और पहलू भी है , अगर हम दुनिया की समस्याओं पर विचार करें तो हमें पता चलेगा कि मनुष्य के अधिकांश समस्याएं प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग के कारण पैदा होते हैं , ओजोन छेद , ग्लोबल वार्मिंग , प्रदूषण , आए दिन तेल का सागरों में बह जाना , जंगलों का काटना , इधर उधर युद्धों करते फिरना यह सब बातें हमें बताती हैं कि अपने अक्सर समस्याओं के जिम्मेदार हम खुद हैं , और भगवान हम अपनी मानव गलतियों खूँटी बनाया गया है जो पर हम सभी त्रुटियों लटका अपनी मुसीबत की सारी जिम्मेदारी उस पर डाल देते हैं , जैसे ही कहीं भूकंप आता है सब चला उठते हैं कि भगवान कहाँ है ? बहुत कम लोग यह सोचने की जहमत गवारा करते हैं कि इसका ज़िम्मेदार भगवान या किसी मानव त्रुटि के कारण हुआ है ?

जहां प्राकृतिक आपदा नहीं आतीं वहाँ कोई भगवान का शुक्रिया अदा करता है, कोई यह नहीं कहता कि यहां की शांति , शांति भगवान की देन है , जब मनुष्य विकास करता है या किसी मुसीबत का सामना सफलतापूर्वक कर लेता है तो इसका श्रेय खुद के सिर पर सुजाता है और जब वे असफल हो जाता है तो क्यों सारा आरोप भगवान में डालकर एक तरफ हो जाता है ?अगर कहीं कोई आपदा आती है तो उसकी सिर्फ दो ही कारण समझ में आता है , या तो इसकी वजह भौतिक कानूनों अपने नियमित चलना है या फिर किसी हस्तक्षेप के कारण उनके भौतिक नियमों में खलल स्थित होना है .