^^ अल- क़ुरान ^^
"जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है, "हम इस क़ुरआन को कदापि न मानेंगे और न उसको जो इसके आगे है।" और यदि तुम देख पाते जब (क़यामत के दिन) ज़ालिम अपने रब के सामने खड़े कर दिए जाएँगे। वे आपस में एक-दूसरे पर इल्ज़ाम डाल रहे होंगे। जो लोग कमज़ोर समझे गए वे उन लोगों से जो बड़े बनते थे कहेंगे, "यदि तुम न होते तो हम अवश्य ही ईमानवाले होते। (31)
वे लोग जो बड़े बनते थे उन लोगों से जो कमज़ोर समझे गए थे, कहेंगे, "क्या हमने तुम्हे उस मार्गदर्शन से रोका था, वह तुम्हारे पास आया था? नहीं, बल्कि तुम स्वयं ही अपराधी हो।" (32)
वे लोग कमज़ोर समझे गए थे बड़े बननेवालों से कहेंगे, "नहीं, बल्कि रात-दिन की मक्कारी थी जब तुम हमसे कहते थे कि हम अल्लाह के साथ कुफ़्र करें और दूसरों को उसका समकक्ष ठहराएँ।" जब वे यातना देखेंगे तो मन ही मन पछताएँगे और हम उन लोगों की गरदनों में जिन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई, तौक़ डाल देंगे। वे वही तो बदले में पाएँगे, जो वे करते रहे थे? (33)
हमने जिस बस्ती में भी कोई सचेतकर्ता (नबी/रसूल) भेजा तो वहाँ के सम्पन्न लोगों ने यही कहा कि "जो कुछ देकर तुम्हें भेजा गया है, हम तो उसको नहीं मानते।" (34)
उन्होंने यह भी कहा कि "हम तो धन और संतान में तुमसे बढ़कर है और हम यातनाग्रस्त होनेवाले नहीं।" (35)
कहो, "निस्संदेह मेरा रब जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है। किन्तु अधिकांश लोग जानते नहीं।" (36)
वह चीज़ न तुम्हारे धन है और न तुम्हारी सन्तान, जो तुम्हें हमसे (अल्लाह से) निकट कर दे। अलबता, जो कोई ईमान लाया और उसने अच्छा कर्म किया, तो ऐसे ही लोग है जिनके लिए उसका कई गुना बदला है, जो उन्होंने किया। और वे ऊपरी मंजिल के कक्षों में निश्चिन्तता-पूर्वक रहेंगे (37)
Al-Quran 34-31:39
"जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है, "हम इस क़ुरआन को कदापि न मानेंगे और न उसको जो इसके आगे है।" और यदि तुम देख पाते जब (क़यामत के दिन) ज़ालिम अपने रब के सामने खड़े कर दिए जाएँगे। वे आपस में एक-दूसरे पर इल्ज़ाम डाल रहे होंगे। जो लोग कमज़ोर समझे गए वे उन लोगों से जो बड़े बनते थे कहेंगे, "यदि तुम न होते तो हम अवश्य ही ईमानवाले होते। (31)
वे लोग जो बड़े बनते थे उन लोगों से जो कमज़ोर समझे गए थे, कहेंगे, "क्या हमने तुम्हे उस मार्गदर्शन से रोका था, वह तुम्हारे पास आया था? नहीं, बल्कि तुम स्वयं ही अपराधी हो।" (32)
वे लोग कमज़ोर समझे गए थे बड़े बननेवालों से कहेंगे, "नहीं, बल्कि रात-दिन की मक्कारी थी जब तुम हमसे कहते थे कि हम अल्लाह के साथ कुफ़्र करें और दूसरों को उसका समकक्ष ठहराएँ।" जब वे यातना देखेंगे तो मन ही मन पछताएँगे और हम उन लोगों की गरदनों में जिन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई, तौक़ डाल देंगे। वे वही तो बदले में पाएँगे, जो वे करते रहे थे? (33)
हमने जिस बस्ती में भी कोई सचेतकर्ता (नबी/रसूल) भेजा तो वहाँ के सम्पन्न लोगों ने यही कहा कि "जो कुछ देकर तुम्हें भेजा गया है, हम तो उसको नहीं मानते।" (34)
उन्होंने यह भी कहा कि "हम तो धन और संतान में तुमसे बढ़कर है और हम यातनाग्रस्त होनेवाले नहीं।" (35)
कहो, "निस्संदेह मेरा रब जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है। किन्तु अधिकांश लोग जानते नहीं।" (36)
वह चीज़ न तुम्हारे धन है और न तुम्हारी सन्तान, जो तुम्हें हमसे (अल्लाह से) निकट कर दे। अलबता, जो कोई ईमान लाया और उसने अच्छा कर्म किया, तो ऐसे ही लोग है जिनके लिए उसका कई गुना बदला है, जो उन्होंने किया। और वे ऊपरी मंजिल के कक्षों में निश्चिन्तता-पूर्वक रहेंगे (37)
Al-Quran 34-31:39
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