सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च-2008 मे गुजरात दंगा के सामूहिक हत्या के जांच के लिये कमिट गठित करने के लिये जो ऑर्डर दिया था उसमें उसने कहा था के " साम्प्रदायिक एकता और सदभावना प्रजातंत्र का नीव है। दंगाइयो का कोई धर्म नही होता मगर ये आतंकवादियो से भी ज्यादा खतरनाक है"।कोर्ट का अवलोकन बहुत थोड़ा है मगर सार्थक और सच्चाई से बहुत क़रीब है। इस कसौटी पर पटना के धमाके और मुजफ़्फ़र नगर के फसाद को रखा जाये तो मीडिया और हुकूमत का रवैया बिल्कुल ही अलग नजर आता है।
कही एक धमका हो जाये सब के कान खड़े हो जाते है, केन्द्र और राज्यकीय प्रशासन फौरन हरकत मे आ जाती है भले ही इस धमाके मे कुछ लोग ही ज़ख्मी क्यो न हुए हो, लेकिन आतंकवाद के नाम पर उस की खबरे ऐसे बनाई जाती है के आतंक और भय का माहौल बन जाता है। पूरी जांच एजेन्सी इस धमाके के पीछे पड जाती है और चन्द ही दिनो मे इस केस को हल कर लिया जाता है और गिरफ्तारी भी की जाती है ये अलग बात है के बम धमाके मे हुए गिरफ्तार अपराधियो मे 90 % से अधिक बेगुनह्गार होते है जो बाद मे अदालत से छूट जाते है। न्यूज़ चॅनेल तो बम धमाके के 10 मिनट बाद ही धमाके के अपराधियो का पूरा शजरा बता देता है। लेकिन अगर कही सम्प्रदायिक दंगा हो जाये चाहे उस मे कुछ लोग मारे हो या हज़ारो की सांख्या मे मारे हो, लाखो लोग बेघर हो जाये या करोड़ो का आर्थिक नुकसान हो। यही हुकूमत जो एक धमाके पे दौडती है मगर दंगे पे उस के कानो पे जु तक नही रेंगती। हुकूमत उस वक़्त तक उस पर धयन नही देती जब तक सैकडो लोग की हत्या न हो जाये। पूरे देश और मीडिया का सम्प्रदायिक दंगे के प्रति उन का रवैया ऐसा रहता है जैसे ए कोई बड़ी घटना नही है बल्के हर रोज का मामूल है। इस लिये इस के बारे मे न तो कोई सोचता है और न कोई सनसनी फैलती है, जब के सच्चाई है के धमाके से ज्यादा दंगे मे लोग मारते है।और इस के कारण प्रजातंत्र की नीव हिलती नजर आती है जिस की तरफ सुप्रेम कोर्ट ने इशारा किया था।
अगर बम धमाके आतंकवाद है तो दंगे को क्या कहा जाये ग।कभि कभी तो ऐसा लगता है के दंगा को एक आम हत्या से भी कम समझा जाता है क्यो के एक हत्या मे फिर भी कानूनी प्रकिर्या नजर आती है लेकिन सम्प्रदायिक दंगे मे वो भी नजर नही आती है। बम धमाके के विरुद्ध नयी नयी जांच एजेंसिया बनाने और नये नये क़ानून बनाने पे विचार किया जाता है मगर सम्प्रदायिक दंगे पे नही। जब के सम्प्रदायिक दंगे भारत के लिये नासूर बन गया है मगर आज तक उस के खिलाफ कोई क़ानून नही बनाया जा सका , बल्के लगता है के भारत मे अब इस को अपराध समझा ही नही जाता इसी लिये कोई भी हुकूमत इस समस्या के हल के लिये आगे नही आ रहा है।
आप को एक हक़ीक़त और बता दु के अगर आतंक और डर की बात की जाये तो बम धमाके से ज्यादा आतंक सम्प्रदायिक दंगे से फैलता है। पटना बम धमाके के बाद वहा की दिनचर्या एक दिन के अंदर मामूल पे आ गयी लेकिन क्या मुज़फ़्फरनगर दंगे के बाद वहा की जिंदगी मामूल पे आ गयी, बिल्कुल नही। हम सभी जानते है के अभी भी लोग वहा 50 हज़ार से अधिक रेलीफ कॅंप मे रह रहे है उन को अपने गाओ और घरो मे नही आने दिया जेया रहा है। अब आप खुद ही देखे के सम्प्रदायिक दंगे बम धमाके से अधिक खतरनाक है और भारत को बम धमाके से नही सम्प्रदायिक दंगा से खतरा है, इस लिये हुकूमत को इसे रोकने के लिये कड़े कदम उठने होंगे।
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