Thursday, 21 November 2013

Dil Jeetne Wala ISLAM !!!!!!!!

दुश्मनों के दिल जीतने वाला इस्लाम ***

इस्लाम का इतिहास रहा है की इसने हमेशा इस्लाम से नफ़रत करने वालो का दिल जीता है, जो लोग अपनी अज्ञानता की वजह से या अपने बाप-दादा के धर्म से अंधी-मुहब्बत की वजह से इस्लाम से नफ़रत करते हैं वो इस्लाम की शिक्षाएं और कुरान और आखरी रसूल (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) के बारे में जानकार इस्लाम की और आकर्षित हुए बिना नहीं रहते, चाहते जो सैंकड़ों-हज़ारों साल पहले के लोग हों या फिर आज के यूरोपियन या अमेरिकी लोग.

इसी कड़ी में आज आपको ऐसे शख्स के बारे में बताऊंगा जो पहले इस्लाम से इतनी नफ़रत करते थे की अल्लाह के रसूल (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) के क़त्ल के इरादे से घर से निकले लेकिन अल्लाह का करम और उसके नबी (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) की शान देखिये की उनके पास तक पहुँचते-पहुँचते ऐसा ह्रदय परिवर्तन हुआ की ईमान ले आए. और ईमान भी ऐसा की इनके बार में अल्लाह के रसूल (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया की मेरे बाद अगर कोई रसूल आने वाला होता तो वह यही होते. जी हां हम बात कर रहे हैं हज़रत उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) की जो आगे जाकर मुस्लिमो के दुसरे खलीफ़ा बने और आप की खिलाफ़त में ही इस्लामी हुकूमत ने अपने सबसे सुनहरे दिन देखे.

लेकिन जब अल्लाह के रसूल (सल्लाहो अलैहि वसल्लम) द्वारा नुबुवत का ऐलान करने के बाद इस्लाम को फिर से जिंदा करने के लिए लोगों को इस्लामी एकेश्वरवाद की और बुलाना शुरू किया तो मक्काह में उनके अपने नाते-रिश्तेदार, कबीले वाले, समाज वाले उनकी जान के दुश्मन हो गए. इन्ही में उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) नाम का एक नौजवान था जो अपनी ताक़त, बहादुरी और हौसले के लिए मशहूर लेकिन साथ ही इस्लाम से नफ़रत भी उतनी ही करते थे. आप कुरैश (मक्काह में अल्लाह के रसूल सल्ललाहो अलैहि वसल्लम का कबीला) की एकता के लिए इस्लाम को ख़तरा मानते थे. आप ही थे जिन्होंने सबसे पहले यह सलाह दी की इस्लाम को रोकने के लिए मुहम्मद (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) को क़त्ल कर देना चाहिए, लेकिन अल्लाह को कुछ और ही मंज़ूर था.
एक दिन आप ने सोचा बस अब तो मुहम्मद (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) को क़त्ल कर देना चाहिए और बस यही इरादा करके घर से तलवार लेकर निकले. रास्ते में आप अपने दोस्त नुऐम इब्ने अब्दुल्लाह से मिले जो चोरी-छिपे इस्लाम क़ुबूल कर चुके थे लेकिन आप ने उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) को इस बारे में कुछ भी नहीं बताया था, उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) के इरादे जानकर आप घबरा गए क्युकी आप जानते थे की उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) जो कहते हैं वो करते हैं. आपका ध्यान बाँटने के लिए उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) से कहा की पहले अपना घर तो ठीक कर लो, तुम्हारी बहन और उसका पति भी ईमान ले आये हैं. यह सुनकर उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) गुस्से से आग-बबूला होकर अपनी बहन के घर पहुंचे जहां उनके बहनोई क़ुरान की तिलावत (पाठ) कर रहे थे. यह देखकर उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) अपने बहनोई से झगड़ने लगे और उन्हें पीटने लगे तो आप की बहन अपने पति को बचने के लिए आयीं तो आप ने अपनी बहन को इतनी जोर का थप्पड़ मारा की आप गिर गयीं और आपके मुहं से खून आने लगा.

उस वक़्त नबुव्वत का छठा साल चल रहा था और मुसलिम संख्या में उँगलियों पर गिने जा सकते थे. मक्काह वालो के ज़ुल्म से बचने के लिए कुछ हबशा (आज का इथोपिया) चले गए थे जो थे वो एक छोटे से झुण्ड में मिलकर नमाज़ और दूसरी इबादतें करते थे. उस वक़्त भी रसूलल्लाह (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) मुस्लिमो के उस समूह के साथ थे. जब उन लोगों ने तलवार लेकर आते हुए उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) को आते हुए देखा जो सब चिंतित और सावधान हो गए, तभी हज़रत अबू हमज़ा (रज़िअल्लहु अन्हो) बोले की अगर वह (उमर) अच्छे इरादे से आ रहा है तो ठीक है वरना मैं उस्सी की तलवार से उसका क़त्ल कर दूंगा. लेकिन नहीं, हज़रत उमर तो इस्लाम क़ुबूल करने आए थे जैसा की अल्लाह के रसूल (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम)ने अल्लाह से दुआ की थी.

अब्दुल्लाह इब्ने मसूद (रज़िअल्लहु अन्हो) फरमाते हैं की “उमर (रज़िअल्लहु अन्हो) का इस्लाम क़ुबूल करना हमारी जीत थी, उनकी मदीना की हिजरत हमारी कमियाबी थी और आपकी हुकूमत अल्लाह की नेमत थी, आपके इस्लाम कुबूल करने से पहले तक हम मस्जिद-ए-हरम (काबा) में तब तक नमाज़ नहीं पढ़ पाते थे लेकिन आपके इस्लाम क़ुबूल करने के बाद क़ुरैश हमें हरम में इबादत करने से नहीं रोक पाए.”

हम अल्लाह से दुआ करते हैं की अल्लाह उन लोगो को जो अपनी अज्ञानता या अपने हठ और घमंड की वजह से इस्लाम से नफ़रत करते हैं अल्लाह उन सबको हिदायत दे..

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